भारत को हमेशा से साधू संतों की पावन स्थली के रूप में जाना जाता है। बात अगर यहाँ के उत्सव और त्योहारों की करें तो शायद ही इस देश में कुंभ मेले से बड़ा कोई उत्सव या त्योहार होगा। ये त्योहार न सिर्फ इस देश की सनातनी परंपरा का घोतक है बल्कि जनमानस के उस भव्य जलसे का भी जीवंत उदाहारण है जहाँ शायद विश्व का सबसे विशाल एवं शांतिपूर्ण मेला लगता है। चौक गये ना? तो पढ़िये कुंभ से सम्बंधित ऐसे ही कुछ अन्य चौकाने वाले तथ्यों को हमारे इस विशेष ब्लॉग में और जल्द से जल्द अपनी एक यादगार यात्रा के लिए बुकिंग कन्फर्म कीजिये…
#1 पौराणिक तथ्य-
कुंभ शब्द का अर्थ कलश होता है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और दानवों द्वारा अमृत कलश की खोज की गई थी। वे दोनों ही इसे ग्रहण कर अमर होना चाहते थे, लेकिन भगवान ब्रह्मा जानते थे कि दानवों का अमृत ग्रहण करना समस्त सृष्टि के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। ऐसे में ब्रह्मा के आदेश पर इंद्र पुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर आकाश की ओर उड़ गए। क्रोधित राक्षसों ने उनका पीछा किया और उनसे कलश को छीनने की कोशिश की। इसी घटनाक्रम और आपसी संघर्ष में अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे छलक कर प्रयागराज (इलाहाबाद), इंदौर, नासिक और हरिद्वार में गिर गईं, जिस कारण इन चारों स्थानों को पवित्र स्थलों के रूप में पहचान मिली और बाद में इन स्थानों में कुंभ मेले की शुरुआत हुई।
#2 पहला ऐतिहासिक उल्लेख-
ऐतिहासिक कुंभ मेले का वर्णन प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूएन त्संग के द्वारा लिखी पुस्तकों में भी पाया जा सकता है जिन्होंने राजा हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया था। अपने लेखों में उन्होंने हर्षवर्धन द्वारा आयोजित एक अनुष्ठान का उल्लेख किया है जहां सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रयाग में दो नदियों के संगम पर पवित्र स्नान किया था।
#3 कुंभ मेले का मुहूर्त–
कुंभ मेला कुछ विशेष तिथियों पर आयोजित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पवित्र नदियों का जल अमृत में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए कुंभ मेले (अर्ध या महा कुंभ मेला) की तारीखों का निर्णय लेने से पूर्व सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है। आमतौर पर कुंभ मेला माघ के महीने (जनवरी) में आयोजित होता है जब ग्रह शुभ स्थिति में होते हैं। मान्यता के अनुसार इन शुभ मुहूर्तो में पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती हैं। साल 2019 में पवित्र स्नान की शुभ तिथियाँ 4 जनवरी 27 जनवरी6 फरवरी 15 फरवरी 17 फरवरी 21 फरवरी और 25 फरवरी हैं।
#4 पीड़ा को सहने की शक्ति-
सर्दियों में आयोजित होने वाला यह दिव्य महास्नान श्रद्धालुओं को पीड़ा सहने की शक्ति प्रदान करता है। इन दिनों नदियों का जल अत्यंत ठंडा होता है, विशेषकर उत्तरी भारत में, सुबह के समय में नदी में स्नान करना काफी कठिन होता है। लेकिन, अपनी श्रद्धा और विश्वास के बल पर लाखों भक्त खुशी-ख़ुशी इस पीड़ा को स्वीकारते हैं। इस बार पहला शाही स्नान मकर संक्रांति के दिन आयोजित होगा और अंतिम 4 मार्च 2019 के दिन होगा। स्नान की तिथियों के बीच पूर्ण चंद्रमा और बसंत पंचमी होंगे।
#5 जब एक साथ दिखते हैं हजारों नागा साधु–
कुंभ मेला नागा साधुओं को देखने का सबसे अच्छा समय होता है। नागा साधु, जिन्होंने सभी भौतिक सुखों और विलासिता का त्यागकर साधुत्व स्वीकार किया होता है, भगवान शिव के परम भक्त हैं और कुंभ मेले को छोड़कर सार्वजनिक रूप से कम ही दिखते हैं। इस त्यौहार के दौरान वे इलाहाबाद और अन्य कुंभ मेला स्थानों में बहुल संख्या में एकत्रित होते हैं। साधु हथियारों जैसे कि छड़ों और तलवारों इत्यादि के साथ अपने योद्धा कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
कुंभ के दौरान ये साधू आपको अपने शरीर पर एक से बढ़कर एक पीड़ादायक प्रयोग करते भी दिख जाएंगे। ये ऐसा अपने पापों के प्रायश्चित करने के लिए करते हैं। नागा साधुओं के अलावा, अन्य हिंदू संप्रदायों के गुरु महात्मा भी इस मेले में हिस्सा लेते हैं। ऐसे कुछ संप्रदायों में प्रमुखतः कल्पवासी (जो एक दिन में तीन बार स्नान करते हैं) और उर्धावावाहुरस (जो अपने शरीर को गंभीर तपस्या के आधीन रखने में विश्वास करते हैं) शामिल हैं।
#6 सबसे बड़ी सभा-
जब भी कुंभ मेला आयोजित होता है, ऐसा लगता है मानो पिछले सारे कीर्तिमान टूट जाएंगे। एक जानकारी के अनुसार, यह मेला पृथ्वी पर मनुष्यों की सबसे बड़ी शांतिपूर्ण सभा है। साल 2013 में प्रयागराज में आयोजित मेले में रिकॉर्ड 120 मिलियन श्रद्धालुओं ने शिरकत कि थी, जो कि अपने आप में एक विश्व कीर्तिमान है। देखना होगा कि क्या 2019 में यह कीर्तिमान टूट सकेगा?
#7 लेटे हुए हनुमान मंदिर की यात्रा की संभावना-
कुंभ के अतिरिक्त प्रयागराज के प्रमुख धार्मिक आकर्षणों में से एक यहाँ स्थित हनुमान मंदिर भी है। यह अनूठा मंदिर साल के अधिकांश समय गंगा नदी में जलमग्न रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि गंगा नदी ने भगवान हनुमान के चरणों को छूने के लिए अपने जल का स्तर बढ़ाया था। लेकिन कुंभ मेले के दौरान गंगा का जल मंदिर से निकल जाता है। इस मंदिर में आप प्रभु हनुमान की विशालकाय एवं दुर्लभ मूर्ति के दर्शन कर सकते हैं यहाँ भगवान् लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं।
#8 संभावनाओं का एक मेला-
ऐसे देश में जहां बेरोज़गारी अभी भी एक बड़ी समस्या है,कुम्भ मेला कईं लोगों की कमाई का एक अस्थायी स्रोत है। 2013 के कुंभ का अनुमान लगाएँ तो पता चलता है के उस दौरान लगभग 650,000 अस्थाई नौकरियां पैदा हुई थीं। इस प्रकार यह मेला कई लोगों के लिए खुशख़बरी भी लाता है!
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अति उत्तम पोस्ट लिखी है
धन्यवाद सर रेलयात्री के प्रति आपका स्नेह ऐसे ही बनाए रखे !