धर्म और संस्कृति से समृद्ध भारत देश में प्राचीन काल से ही विदेशियों का आना-जाना रहा है। बात चीन की हो या ग्रीस की हर देश के लोगों में भारत की सभ्यता-संस्कृति को जानने-सिखने को लेकर एक विशेष ललक और उत्साह देखा गया है जो आज भी जारी है। भारतीय जहां आज भी विदेश घूमने जाते है वहीँ विदेशी भारतियों से यहाँ की सभ्यता-संस्कृति सिखने आते है। ऐसे में कौन थे वो ख़ास विदेशी मेहमान जिन्होंने सर्वप्रथम भारत की धरती पर कदम रखा और स्वयं को यहां की संस्कृति का हिस्सा बनाया, आइये जाने उन ख़ास लोगो के बारे में-
फाहियाँन चीन–
इनके बारे में कहा जाता है कि ये एक चीनी बौद्ध भिक्षुक, यात्री एवं अनुवादक थे। इन्होंने 399 ईस्वी से 412 ईस्वी तक का समय भारत में बिताया। इस दौरान उन्होंने भारत के विभिन्न स्थानों के अलावा श्रीलंका, नेपाल बुद्ध कि जन्म भूमि कपिलवस्तु कि यात्राएँ की जब न तो रेल सेवा थी न ही बसें चलती थी। कहते है कि उनकी यात्रा का मुख्य लक्ष्य बौद्ध धर्म के बहुमूल्य ग्रंथो को संकलित कर चीन ले जाना था उन दिनों भारत में चन्द्रगुप्त विक्रमादितीय का शासन था।
मेगस्थनीज़, ग्रीस–
यह ग्रीस के सामंती शासक सिक्यूकस का राजदूत था जो भारत पर आक्रमण कर अपने राज्य विस्तार की संभावना तलाश रहा था। मगर अंततः उसे संधि के लिए विवश होना पड़ा। ये राजा चन्द्रगुप्त का शासन काल था। संधि के अनुसार मेगस्थनीज़ 5 वर्षों 298 से 302 ईस्वी तक चन्द्रगुप्त के दरबार का अतिथि बनकर रहा। अपने इस प्रवास काल के दौरान मेगस्थनीज़ ने भारत के विषय जो भी जाना-सीखा अनुभव किया उसे अपनी पुस्तक इंडिका में संजोया। वह भारत की सभ्यता-संस्कृति, राज-काज की व्यवस्था से काफी प्रभावित था।
अल बेरूनी, पर्शिया–
यह भारत पर कई बार आक्रमण करने वाले मोहम्मद गज़नी का साथी था इस के विषय में कहा जाता है कि ये फ़ारसी का विद्वान्, लेखक, एक धर्मज्ञ, वैज्ञानिक विचारक, गणितज्ञ, कवि, खगोलशास्त्री एवं चिकित्सीय विधा का जानकार था। भारत में निवास के दौरान इसने कई भारतीय भाषाओँ को भी सीखा। भारत में बिताए अपने दिनों पर इसने एक किताब तारीख-अल-हिन्द (भारत के दिन) लिखी थी। अल बेरूनी को भारत के इतिहास का पहला जानकार भी माना जाता है जिसने धरती का रेडियस मापने का सबसे सरल फॉर्मूले को ईजाद किया साथ ही प्रकाश का वेग हवा के वेग से ज़्यादा होता है, का भी पता लगाया था।
इब्ने बत्तूता, मोरक्को–
भारत आए इस्लामिक यात्रियों में इब्ने बत्तूता को सबसे महान यात्री माना जाता है जिसने मात्र 21 साल की उम्र में अकेले विदेशी यात्राएं शुरू कर दी थी। अपने पूरे जीवन काल में उसने कुल 75000 मील यानि 1,21,000 किलोमीटर की यात्राएं तय की। कहते है की इब्ने बतूता ने दुनिया भर में फैले इस्लाम धर्म को जानने-समझने के लिए तक़रीबन सभी इस्लामिक देशों की यात्रायें की थी। इस दौरान वो अपने साथ यात्रा सम्बन्धी कोई ज़रूरी समान नहीं रखते थे। वो भारत में मोहमद बिन तुगलक के शासन काल में आए थे। तुगलक ने उसका स्वागत किया और अपने दरबार में काज़ी बनाया। इब्ने बत्तूता तुगलक के दरबार में 7 सालों तक काज़ी के पद पर रहे। इब्न बत्तूता के भ्रमणवृत्तांत को ‘तुहफ़तअल नज्ज़ार फ़ी गरायब अल अमसार’ व ‘अजायब अल अफ़सार’ का नाम दिया गया।
ह्वेन त्सांग, चीन–
राजा हर्षवर्धन के राज्य काल में भारत आया ह्वेन त्सांग एक चीनी बौद्ध भिक्षुक था। कहते है की सन 629 एक स्वपन में इसे भारत की यात्रा करने की प्रेरणा मिली। उस समय तुर्को एवं तंग राजवंश के बीच युद्ध जारी था, जिस कारण राजा ने विदेशी यात्राएं बंद कर रखी थी। मगर भारत यात्रा का विचार बना चुके ह्वेन त्सांग ने अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी। सन 630 में जलालाबाद आ पहुचें। यहां सन ६३३ ईस्वी में कश्मीर से दक्षिण की और फ़िरोज़पुर पहुंचे इस दौरान वे कई हिन्दू एवं जैन धर्मालम्बियों से भी मिले। साथ ही कई बौद्ध मठों एवं सम्मेलनों में भी भागीदारी ली। अपनी यात्रा में ह्वेन त्सांग ने जालंधर। अयोध्या, बनारस, पाटलिपुत्र, नालंदा के साथ-साथ दक्षिण भारत के अमरावती एवं नागार्जुनकोंडा आदि स्थानों की यात्राएँ की। एक मानव खोपड़ी जिसे त्सांग की बताया जता है, वह तियान्जिन के टेम्पल ऑफ ग्रेट कम्पैशन में सन 1956 तक थीण्बाद में दलाई लामा द्वारा भारत को भेंट कर दी गयी। यह वर्तमान में पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।
इसके अलावा मार्को पोलो ईटली, अब्दुल रज़्ज़ाक पर्शिया, निकलो कोनटी ईटली, अफनयासा निकीटिन रूस, डोमिंगो पेस पुर्तगाल, फेरनाओ नुनेज़ पुर्तगाल एवं वास्को डी गामा पुर्तगाल का नाम शामिल है। वास्को डी गामा को पहले पुर्तुगिस्त के रूप में भी जाना जाता है जिसने भारत की यात्रा की थी।
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