होली का नाम ज़ुबान पर आते ही आँखों के आगे रंग बिरंगे चेहरों का काल्पनिक दृश्य उत्पन्न हो जाता है। हवा में उड़ता गुलाला, ढोलक की थाप पर सजते फागुन के गीत इस त्यौहार की आत्मा माने जाते है। मगर क्या भारत के हर राज्य में इसी तरह से होली मनाई जाती है, शायद नहीं?
उत्तर भारत के राज्य पंजाब में होली के त्यौहार की रौनक होली के अगले दिन देखने को मिलती है। इस दिन यहाँ होला मोहल्ला का पारंपरिक त्यौहार मनाया जाता है। वैसे तो होली एवं सिख धर्म के त्यौहार होला मोहल्ला में कई सामानताएं है। मगर सिख धर्म के जानकार इस त्यौहार को होली से इतर बताते है। आइये जाने सिख धर्म के इस रंगीन त्यौहार होला मोहल्ला के बारे में-
मूल रूप से यह त्यौहार पंजाब के आनंदपुर साहिब में मनाया जाता है इसकी शुरुआत सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह जी ने 17वी सदी में की थी। उस समय यहाँ मुगलों का राज था। गुरुगोविंद सिंह जी अपनी सेना के साथ उन्हें खदेड़ने में लगे हुए थे। ऐसे में सिख शूरवीरों के निडरता से युद्ध लड़ने के उनके वचन को उर्जा प्रदान करने के लिए इस त्यौहार की शुरुआत की गई थी।
गुरु गोविन्द सिंह जी ने इसे पौरुष का पर्व बताया और होली के अगले दिन इसे मनाने की शुरुआत की। जानकारों के अनुसार होला का अर्थ आक्रमण करना एवं मोहल्ला का वह स्थान जहां आक्रमण करना होता है। यहाँ होला अरबी एवं मोहल्ला फारसी का शब्द है। हालाँकि समय के साथ-साथ जानकारों की राय में बहुत परिवर्तन हुआ है। जिस कारण इस पर्व से जुड़े विभिन्न किस्से सुनाने को मिलते है।
आनंदपुर साहब का इतिहास–
श्री अमृतसर साहिब के बाद श्री आनंदपुर साहिब सिखों का सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है। इस शहर की स्थापना सिखों के नौवे गुरु गुरु तेग बहादुर जी ने सन 1664 में की थी। सिख इतिहास के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह जी ने यहाँ अपने जीवन के 28 साल गुजारे थे। यहाँ स्थित तख़्त श्री केसगढ़ साहिब में ही उन्होंने पंज प्यारे का सृजन कर खालसा पंथ की स्थापना भी की थी। ऐसे में यहाँ सालभर श्रधालुओं का आना-जाना लगा रहता है। वहीँ होला मोहल्ला के दौरान शानदार मेले का आयोजन होता है।
आयोजन में मज़ा ले देसी मार्शल आर्ट्स का–
जैसे कि इस त्यौहार के आयोजन का उदेश्य शौर्य एवं पराक्रम का प्रदर्शन करना होता है। ऐसे में यहाँ आप सिख धर्म के लड़ाकू निहंगों (जिन्हें गुरु गोविन्द सिंह की फौज का सिपाही माना जाता है।) उनके द्वारा प्रदर्शित किये जा रहे देसी मार्शल आर्ट्स की विभिन्न कलाओं लुत्फ़ उठा सकते है। इनमें पारंपरिक सिख मार्शल आर्ट गतका, हैरतअंगेज घुड़सवारी जिसमें एक घुड़सवार द्वारा 4-5 घोड़ो को अपने साहस एवं शौर्य द्वारा अकेले सँभालता है का प्रदर्शन एवं छोटे बच्चों के दांतों तले उंगली दबा देने वाले खतरनाक करतब आदि शामिल होते है। साथ ही यहाँ लगने वाला तीन दिवसीय मेला भी बड़ा लुभावना होता है जिसके खुबसूरत रंग हर किसी को अपनी ओर मोहित कर लेते है।
ऐसे जाए तख़्त श्री केसगढ़ साहिब–
चुकी आनंदपुर साहिब तक के लिए कोई भी सीधी ट्रेन नहीं है। ऐसे में आप रेलयात्री की शानदार कैब सेवा द्वारा आनंदपुर साहिब पहुँच सकते है। आप होली एवं होला मोहल्ला के लिए रेलयात्री कैब बुकिंग के डिस्काउंट ऑफर का फायदा भी ले सकते है। रेलयात्री कैब बुकिंग द्वारा रु 500 तक की छूट दी जा रही है। आप इस ऑफर का लाभ यूनिक कोड HOLI का उपयोग कर ले सकते है।