लेखक: मनोज तिवारी
ओरछा- जिसका शाब्दिक अर्थ होता है गुप्त स्थान। पहाड़ों की गोद में स्थित ओरछा एक समय बुंदेलखण्ड की राजधानी हुआ करता था। ओरछा में कदम रखते ही यहाँ की चमत्कारी आभा अपने आप आपको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। सूनसान रास्ते और ऊंचे-ऊंचे पठार मानो वीर रस की गाथा गा रहे हों। तेज रफ्तार में बह रही बेतवा को नमन करते हुए, किलों के अद्भुत शहर का भ्रमण करना यहाँ बेहद रोमानी अनुभव प्रदान करता है।
कैसे पहुंचे
झाँसी से 16 किमी की दूरी पर मध्यप्रदेश में स्थित है ओरछा।
अयोध्या की याद दिलाता ओरछा
“सर्व व्यापक हैं राम के दो निवास खास, दिवस ओरछा रहत, शयन अयोध्या वास।”
साधारण बोलचाल की भाषा में भगवान राम राजाराम के रूप में भी जाने जाते है। जब आप ओरछा आएंगे तो यहाँ आपको रामराजा का दरबार देखने को मिलेगा। ऐसी मान्यता है कि ओरछा अयोध्या की परछाई है। यहां आप इस भ्रम से उभर नहीं पाएंगे की आप अयोध्या में नहीं बल्कि ओरछा में हैं। बड़ी प्रबल मान्यता है कि श्रीराम दिन में यहां और रात में अयोध्या में विश्राम करते हैं। शाम की आरती होने के बाद बजरंगबली को जलती हुई ज्योति सौंप दी जाती है। उसके बाद हनुमानजी रात्रि विश्राम के लिए भगवान राम को अयोध्या ले जाते हैं।
भगवान् राम से रामराजा बनने के कहानी
ओरछा के नरेश मधुकरशाह की पत्नी गणेशकुंवरि थीं। प्रायः नरेश भगवान् श्रीकृष्ण की उपासना के लिए गणेशकुंवरि को वृंदावन चलने को कहते थे। लेकिन रानी राम भक्त थीं इसलिए उसने वृंदावन जाने से मना कर दिया। इससे नाराज़ राजा ने गुस्से में कहा कि- अगर तुम इतनी ही रामभक्त हो तो अपने राम को ओरछा ले आओ”। तदुपरांत रानी ने अयोध्या में सरयू नदी के तट पर लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटीया बनाकर साधना आरंभ की। उन दिनों तुलसीदास भी अयोध्या में साधना कर रहे थे जहां उनका आशीर्वाद भी रानी को मिला। मगर दुर्भाग्यवश रानी को कई महीनों तक भगवान राम के दर्शन नहीं हुए। अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू में कूद गयी। वहां जल की गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए।
मंदिर निर्माण के पीछे की कहानी
अंततः भगवान राम ने ओरछा चलना स्वीकार किया। लेकिन उनकी तीन शर्तें थीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी, यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी, उनकी मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी। वहां से पुन: नहीं उठेगी। राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने श्रीराम की मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर चतुर्भुज मंदिर में स्थापित कर दिया जाएगा। किन्तु श्रीराम के विग्रह ने चतुर्भुज मंदिर जाने से मना कर दिया। कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। प्रभु राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं। जबकि चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान है। संवत 1631 को रामराजा जब ओरछा पहुंचे, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ।
अद्भुत है राजा राम की मूर्ति
जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी। जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी।
रामराजा का दरबार लगता है
रामराजा मंदिर विश्व का अकेला मंदिर है, जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है। पुष्प नक्षत्र में यहां मेले जैसा माहौल होता है। ओरछा मध्य प्रदेश में अहम पर्यटन स्थल है। इसके अलावा यहां भगवान राम का दरबार सजता है। इस मंदिर के चारों ओर कई मंदिर हैं। इसलिए यहां भगवान राम को ओरछाधीश भी कहा जाता है। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर, राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक और हरदौल की समाधि है।
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