क्यों है इतने मंदिर एक साथ- मलूटी गांव, दुमका
झारखण्ड के मलूटी गाँव की पहचान मंदिरों के गाँव के रूप में है। कहा जाता है कि यहाँ कुल 108 मंदिर थे। मगर रख-रखाव के अभाव में अब लगभग 70 मंदिर ही बचे है। इतने मंदिर एक साथ होने के कारण ये गाँव गुप्त काशी के नाम से पुरे देश में प्रसिद्ध है। इन मंदिरों के निर्माण के उद्देश्य के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार यहां के बसंत राजवंश के राजाओं को भवन, महल बनवाने से ज्यादा रूचि सुन्दर मंदिरों के निर्माण में थी इसलिए यहां के हर राजा ने अपने काल में एक से बढ़कर एक भव्य मंदिर बनवाए। साथ ही यहां बने मंदिरों की एक और विशेषता इनका विभिन्न समूहों में बना होना है। जैसे कि शिव मंदिर का समूह, दुर्गा, काली, विष्णु, धर्मराज एवं मनसा देवी आदि का समूह। यहां मौलिक्षा माता का भी भव्य मंदिर है जिनकी मान्यता एक जागृत देवी के रूप में है।
बसंत राजवंश का इतिहास
बसंत राजवंश के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसके प्रथम राजा बसंत पहले एक मामूली किसान थे। स्थानीय कहानी के अनुसार उस समय के सुल्तान अलाउद्दीन शाह की बेगम का पालतू बाज एक बार उड़ गया था। किसान बसंत ने बाज को पकड़ कर बेगम को वापस दे दिया था। तब सुल्तान ने खुश होकर मलूटी गांव एवं बाज की उपाधि पुरूस्कार में किसान बसंत दी थी।
स्मार्ट सिटी नहीं स्मार्ट विलेज है ये- पुंसरी गांव, साबरकांठा
आज भी जहां भारत के अधिकांश गांव से हमें बिजली, पानी, टूटी-फूटी सड़कों एवं लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की खबरें आम सी लगती है। वहीं गुजरात में गांधीनगर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर बसा पुंसरी गांव इस सब के विपरीत ऐसी चकित कर देने वाली मिसाल पेश कर रहा है जिसके उसके बारे में जानकर मैट्रो सिटी में रहने वाले शर्मा जाए।
यहां न तो आपको बिजली-पानी की कोई समस्या दिखेगी न ही टूटी-फूटी सड़के और न ही बजबजाती नालियां। शहरों में वाई-फाई की आस में भटकने वालों के लिए तो ये किसी जन्नत से कम नहीं। एक ओर जहां सुरक्षा के लिहाज से आपको यहां के पांचो प्राइमरी स्कूलों से लेकर गांव की सड़कों पर जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगे मिलेंगे। वहीँ गांववालों से सीधे सम्पर्क के लिए पंचायत भवन से कंट्रौल होने वाले वाटरप्रुफ स्पीकर भी हर चौक-चैराहे पर टंगे दिखेंगे। इन स्पीकरों का इस्तेमाल रोजाना महात्मा गांधी के भजन, श्लोक एवं संदेश गांववालों तक पहुँचाने के लिए भी किया जाता है। गांव में यातायात की कोई परेशानी न हो इसके लिए यहां बस सेवा भी उपलब्ध है। इस सब के अलावा ऐसी कई सुख-सुविधाएँ इस गाँव में उपलब्ध है जिसकी कल्पना करना किसी दिव्य स्वप्न से कम नहीं।
दरअसल इस सब के पीछे कड़ी मेहनत और दिमाग है यहां के युवा सरपंच हिमांशु पटेल का जिसने अपनी कॉलेज की पढ़ाई के बाद रोजी-रोजगार के चक्कर में पड़ने की बजाए गांव के सरपंच का चुनाव जीतकर अपने गांव की सूरत ही बदल दी। आपको बता दें कि हिमांशु को अपने इन उत्तम कार्यो के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से अवार्ड भी मिल चुका है।
खेती से बदली गांव की तकदीर- हिवेरे बाजार, अहमदनगर
खेती-बाड़ी के काम को हमने भले ही आज गरीबी और किसानों की आत्महत्या का पर्याय मान लिया गया हो। जबकि देश में ऐसे कई विरले गांव है जहां के एक नही कई करोड़पति किसान है। महाराष्ट्र के अहमदनगर के हिवेरी बाजार नामक गांव में किसानी से करोड़पति बने किसान इसकी मजबूत मिसाल है।
गौरतलब है कि 90 के दशक में इस गांव के ज्यादातर किसान गरीब थे। मगर बाद में शहरों से अच्छी शिक्षा लेकर लौटे गांव के कुछ युवकों ने गांव की तकदीर ही बदल दी। उन्होंने किसी पेशे में जाने कि बजाए अपने पुश्तैनी किसानी के काम पर अपना पूरा जोर लगा दिया । अपनी शिक्षा के आधार पर उन्होंने जैविक फसलों की खेती शुरू की। आज इस गांव के लगभग 100 घर करोड़पति किसानों के है। साथ ही गांव की तरक्की के लिए यहां शराब का सेवन पूर्णत वर्जित है। गांव में सबको बराबरी का दर्जा मिल सके और इस गांव की एक अलग पहचान के लिए गाँव में कोई भी अपना सरनेम न लगा कर अपने गांव का नाम लगाता है।
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