यहाँ होती है इंजीनियर्स की खेती- पटवाटोली, गया
मुक्तिधाम गया की पवित्र फल्गु नदी के किनारे बसा बुनकरों का गांव पटवाटोली कभी अपने काम-धंधे से काफी खुश था। यहां बनने वाले कपड़े विदेशों तक में बिकते थे। मगर बदलते वक्त के साथ आधुनिकता की चमक में यहां के कपड़ों की मांग घटती चली गई। साथ ही बिजली सप्लाई के घोर संकट ने भी इस उद्योग को खासा नुकसान पहुंचाया। बुनकर उद्योग मरणासन्न अवस्था में जा पहुंचा समुदाय के लिए रोजी-रोटी की चुनौती आ खड़ी हुई।
ऐसे में यहां के लोगों ने इस संकट को अपनी नियति मानने की बजाए किस्मत से लड़ना सही समझा और शिक्षा को अपनी लड़ाई का हथियार बनाया। बुनकर समाज ने अपने बच्चों की शिक्षा व्यवस्था में खासा परिवर्तन कर उन्हें कम साधनों के साथ कड़ी मेहनत करने को प्रोत्साहित किया।
साल 1971 में यहां के रामलगन यादव ने काफी संघर्ष के बाद सर्वप्रथम आईआईटी की परीक्षा पास कर आईआईटी खड़गपुर से आर्किटेक्चर की पढाई की। उनकी इस सफलता ने बाकी लोगों के लिए मार्गदर्शन का काम किया। उसके बाद इस गांव से आईआईटी इंजीनियर बनने का सिलसिला चल पड़ा जो आज तक जारी है। गौरतलब है कि यहां के कई घरों से आधे दर्जन लोग इंजीनियर है। इस सबकी वजह है ग्रामीण बच्चों की हर प्रकार की सहायता लिए ग्रामीणों और इंजीनियर्स का दल है।
गर्व की बात है कि आज पटवाटोली के इंजीनियर्स दुनियाभर में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुके है। यहां के 30 से ज्यादा इंजीनियर्स के परिवार आज अमेरिका के निवासी है। इसके अलावा यहां के कई इंजीनियर्स सिंगापुर, दुबई, नेपाल, हांगकांग, कनाडा में कार्यरत है। आज यहां से आई आई टी के अलावा एन आई टी, बी आई टी आदि को मिलाकर सैकड़ों लोग इंजीनियर बन चुके हैं। अब ये गांव पूरे हिन्दुस्तान में आई आई टी विलेज के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है।
इस गाँव ने दिए है देश को कई नौकरशाह- माधोपट्टी, जौनपुर
भारतीय सिविल सर्विसेज एक ऐसा शाही पद है जिसके आकर्षण से शायद ही कोई भारतीय अछूता हो। वहीं इस मुकाम तक पहुंचने के लिए की जाने वाली कड़ी मेहनत किसी तपस्या से कम नहीं होती है। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो इस सफलता को हासिल करते है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर का एक ऐसा ही गांव है माधोपट्टी जहां के लगभग हर घर से किसी सदस्य ने इस मुकाम को हासिल किया है कहीं-कहीं तो एक घर के चार-चार सदस्यों ने इस सफलता का स्वाद चखा हुआ हैं। जबकि ऐसी कामयाबी पाना कहीं से भी आसान नहीं होता।
स्थानीय लोगों के अनुसार मशहूर शायर वामिक जौनपुरी के बेटे मुस्तफा हुसैन ने सर्वप्रथम साल 1914 में सिविल सर्विस ज्वाइन की थी। उसके बाद इसी गांव के इंदुप्रकाश ने साल 1952 में आई ए एस की परीक्षा पास की जिसके बाद से इस गांव में सिविल सर्विसेज को लेकर एक अलग ही आकर्षण पैदा हो गया। 75 परिवारों के इस छोटे से गांव से अब तक 47 लोग उच्च प्रशासनिक पद पर काबिज़ हो चुके हैं। यहां के निवासी छत्रपाल सिंह ने अपने सेवाकाल में तामिलनाडु के मुख्य सचिव तक का पदभार संभाला है। गांव के सीमित साधन एवं अपनी कमजोर अंग्रेजी के बावजूद यहां के ज्यादातर छात्र अपनी बारहवीं के बाद ही सिविल सर्विसेज की तैयारी में लग जाते है। जहां इनका सबसे बड़ा साथी दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत होते है।
खेल-खेल में बदल रही है गावं की किस्मत- बिजौली गांव, ग्वालियर
गांव, गरीबी, सीमित साधन अक्सर लोगों के सपनों में बाधा बन जाते है। इंसान की सारी प्रतिभा ऐसे संघर्ष के आगे घुटने टेक देती है। ग्वालियर के बिजौली ग्राम पंचायत निवासी जगन्नाथ सिंह परमार ने भी कभी खेलों में अपना भविष्य बनाने का ख्वाब देखा था। मगर पैसे की तंगी आदि के कारण उनका ये सपना पूरा न हो सका। उसके बाद उन्होंने अपने सपने को गांव के युवाओं की आँखों में उतार कर देखना शुरू कर दिया। उन्होंने ऐसे खेल के बारे में सोचना शुरू किया जिसमें कम से कम खर्च करना पडे़ और उनकी ये तलाश खत्म हुई कबड्डी के खेल पर जाकर जहां उनका खर्च चूना पाउडर का था। उसके बाद उन्होंने अपने गांव के बच्चों को कबड्डी के खेल का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।
हालांकि ये काम भी उनके लिए उतना आसान नहीं था। विशेषकर जब बात लड़कियों को इस खेल से जोड़ने की थी। मगर जैसे ही उनकी द्वारा तैयार की गई महिला टीम की कुछ सदस्यों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया उनके यहां छात्रों की लाइन लग गई। आज उनके द्वारा तैयार किए गए 250 स्टार खिलाड़ी है जिनमें से कई भारतीय कबड्डी टीम में है। आज बिजौली के हर घर में नेशनल, स्टेट व डिवीजन लेवल का एक खिलाड़ी है। इसके अलावा जगन्नाथ सिंह परमार अब यहां के बच्चों को कुश्ती का प्रशिक्षण भी देकर उन्हें विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के लिए तैयार कर रहे हैं।
Very interesting and inspirational stories are there.
Great work for child dream and fitness lage raho…..