वैसे तो वीरों की धरती भारतवर्ष के हर घर में देश पर प्राण निछावर करने वाले देशप्रेमी बसते है। वहीँ बात अगर ऐसे गाँव की करें जहां की संस्कृति में सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी देशसेवा के लिए सरहदों पर भेजने का अनोखा चलन है, एक ऐसी प्रथा है जो अपने घर के बेटों के शहीद होने के बाद भी नहीं डिगती तो ऐसे गाँव विरले ही है। कारगिल के विजय दिवस पर पढ़िये ऐसे ही गाँव की कहानियां जहां के सैकड़ों नहीं हजारों वीर जवान हर वक़्त तैनात रहते हैं सरहदों की सुरक्षा में। और जिन्होंने एक नहीं कई बार दुश्मनों को नाकों चने चबवाए है।
अप्शिंगे आर्मी का गाँव–
सतारा- महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के सतारा में स्थित अप्शिंगे गाँव दरअसल ‘अप्शिंगे मिलिट्री’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। ये गाँव वीरों की वो धरती है जो न जाने कितने दशकों से भारत भूमि की रक्षा के लिए समर्पित है। मराठा वीरों का ये गाँव लगभग 400 वर्ष पुराना है। इस गाँव के कुछ लोगों ने सर्वप्रथम क्षत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में मुगलों के विरुध हुए युद्ध में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उसके बाद तो देशसेवा जैसे इस गाँव की परंपरा ही बन गयी। बात भले फिर ब्रिटिशकाल में हुए विश्वयुद्ध की हो या आज़ाद भारत में अलग-अलग समय में पाकिस्तान एवं चीन से हुए युद्ध की। उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार प्रथम विश्वयुद्ध में गाँव के कुल 46 वीरों ने शहादत दर्ज करवाई थी। जिनका एक भव्य स्मारक गाँव में है।
वहीँ गाँव के वीरों के बारे में ये भी कहा जाता है कि यहाँ के चार सपूत सुभाषचंद्र बोस द्वारा गठित आज़ाद हिन्द फौज में भी सैनिक थे। किसी-किसी घर में तो ये परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है। वहीँ कई परिवार तो अपनों की कुर्बानी के बाद भी इतने साहसी है की उनकी अगली पीढ़ी को फौज में भेजने से उन्हें कोई आपत्ति कोई डर नहीं। सच में धन्य है ये गाँव यहाँ की स्त्रियाँ जो ये जानती है की उनके पति-बेटे किस तरह हर वक़्त मौत से आँख-मिचोली खेलते है। मगर फिर भी कभी नहीं घबराती बल्कि हृदय से अपने घरवालों को माँ भारती की रक्षा में भेजती आ रही है।
गहमर- बस गाँव नहीं वीरों की धरती है-
गाजीपुर- उत्तरप्रदेश
उत्तरप्रदेश के जिला गाजीपुर का गहमर गाँव आज किसी परिचय का मोहताज़ नहीं। दशकों से अपने सपूतों को देश की रक्षा के लिए सरहदों पर भेजने वाला ये गाँव भारतीय फौजियों का गढ़ कहा जाता है। गाँव के लोगों का कहना है कि, हालाँकि हमारे लोगों को फौज में भारती कर युद्ध में लड़ने के लिए भेजने की ये परंपरा अंग्रेजी राज में जबरदस्ती प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना की तरफ से लड़ने के लिए शुरू की गयी थी। मगर आज यहाँ के हर निवासी को इस बात का मान है कि वो गहमर का निवासी है।
गाँव में आज भी ऐसे कई बुज़ुर्ग फौजी है जिन्होंने सन 1947,1962,1965,1971 एवं कारगिल की लडाई में भाग लिया था। वरिष्ठ फौजियों की (भूतपूर्व सैनिक सेवा समिति) द्वारा किस घर से कितने लोग सेना में है कितने पहले थे उनसे जुड़ी हर जानकारी को बड़े ही तरीके से इकट्ठा कर रखा जाता है। समिति के लोगो के अनुसार गाँव का शायद ही कोई घर ऐसा हो जिसके सपूतों ने देश की सरहद की हिफाज़त का ज़िम्मा न संभाला हो।
गाँव में हर महीनें आर्मी की कैंटीन वाली गाड़ियाँ विशेष रूप से फौजी परिवारों की खरीदारी के लिए भेजी जाती है। वहीँ बनारस से हर महीनें डॉक्टर्स का एक विशेष दल भी ग्रामीणों की चिकित्सीय जाँच के लिए आता है। गाँव में सुबह शाम आपको सैकड़ों की संख्या में नवयुवक फौज में भर्ती के लिए तैयारी करते मिल जाएँगे।
Jay hind
We have one such more village in Maharashtra’s Sindhudurg district,named as Sarambal,valor of this village dates back to Parmar dynasty till today