ठिठुरती सर्दी में थोड़ी चर्चा गरमा-गरम चाय की- भाग 2

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भारत में चाय पीने-पिलाने की संस्कृति काफी रोचक है। अमीर हो या गरीब, हिन्दु हो मुस्लिम सभी इसके स्वाद के दीवाने है। सबके जीवन में ये स्वाद इतना अपना सा है कि किसी का भी दिन इसके बिना पूरा नहीं होता है। बात अगर ठंड के सर्द मौसम की करें तो इसके चाहने वालों की तादाद में अच्छी-खासी बढ़ोतरी देखने को मिलती है।

इस दौरान वो लोग भी जो अक्सर कम चाय पीते हैं या पीते ही नहीं वो भी बड़े शौक से इसका लुत्फ उठाते हैं। कई जगह तो इसे इज्जत आफ़जाई से भी जोड़ जाता है कि अगर आपने मेहमान को चाय न पिलाई तो ये कैसी खातिरदारी और अगर सिर्फ चाय पिलाई तो मेहमान कहते है कि बस सिर्फ चाय! यानी काफी अलग और रंगीन किरदार है इस चाय का हमारी जिंदगी में- तो, चलिए आज अआप्को ऐसे ही कुछ रोचक चाय के स्वादों से रूबरू करवाते हैं…

मादा ऊँट के दूध की चाय- राजस्थान

camel's milk tea in rajasthan

वैसे तो सुनने में भी थोड़ा अजीब लगता है लेकिन जो लोग राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं या फिर वहाँ की संस्कृति से वाकिफ है उन्होंने जरूर मादा ऊँट के दूध की चाय पी होगी या उसके बारे में जानते होंगे। राजस्थान के ग्रामीण इलाके खासकर जैसलमेर, बाडमेर आदि में जहाँ रेगिस्तान का ये जानवर आसानी से मिल जाता है। वहाँ इसके दूध की चाय आम है। वहीं बाहर से आये पर्यटकों के लिए ये किसी खास सौगात से कम नहीं मानी जाती।

राजस्थान के अलावा गुजरात के सुरेन्द्रनगर रेलवे स्टेशन में भी आप इसका स्वाद ले सकते हैं। कार्तिक के महीने में राजस्थान के पुष्कर में लगने वाले मेले में आप ऊँट के दूध की चाय के अलावा पनीर, घी एवं कई अन्य पकवानों का लुत्फ उठा सकते हैं।

नमकवाली चाय- भोपाल

namak wali chai bhopal

जिस तरह लखनऊ की पहचान उसके नवाबों से है। उसी तरह भोपाल की पहचान उसकी बेगमों एवं झीलों की बदौलत है। वहीं भोपाल में मिलने वाली करारी, नमकीन चाय की भी पूरे देश में एक अलग पहचान है। आम चाय की तरह दिखने वाली भोपाल की नमक वाली चाय के नायाब स्वाद के हजारों मुरीद आपको यहाँ की चाय की पटरियों के आस-पास  देखने को मिल जाएंगे। इनमें भोपाल के निवासियों के अलावा यहाँ आए देसी-विदेशी सैलानी भी बड़ी तादाद में शामिल होते हैं।

सालों से भोपाल की संस्कृति में अपनी एक अलग जगह बना चुकी इस चाय में साधारण मीठे स्वाद के अलावा हल्का नमक डाला जाता है। नमक वाली ये चाय जहाँ इसके पीने वालों को अलग ज़ायका देती है वहीं इसके सेवन से गले की खारिश, कफ एवं सिरदर्द को दूर करने में भी सहायक मानी जाती है। पहले के वक्त में चौक-चौराहों पर मिलने वाली इस चाय के लिए शेरी भोपाली एवं असद भोपाली जैसे नामचीन शायरों को भी देखा जाता था। हालांकि अब भी आपको रात बारह बजे तक यहाँ की सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में गप्पे लड़ाते एवं चुस्कियां लेते इस चाय के कई दीवाने मिल जाएंगे।

कट्टन चाया- केरल

kattan tea kerla

केरल में पी जाने वाली इस खास चाय में न तो दूध डलता है, न ही चीनी डाली जाती है। हल्के नींबू की खट्टाई वाली इस चाय को केरल के लोग अक्सर खाना खाने के बाद पीते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये चाय डाइजेशन के लिए एक उपयुक्त पेय पदार्थ है। उत्तर केरल में ये चाय सबसे ज्यादा प्रचलित है। इसे बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार पानी में चायपत्ती को उबालते हैं। साथ ही उसमें लौंग, अदरख एवं इलायची भी डालते है। इसके उबलते समय ही इसमें नीबू निचौड़ कर उसकी बूंदे डाली जाती है। इस दौरान चाय का रंग हल्का सुनहरा हो जाता है। मिठास के लिए इसमें पारंपरिक खजूर की चाशनी डाली जाती है। हालांकि आजकल चीनी आदि का भी इस्तेमाल आम हो गया है।

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