कान्हा की नगरी, जहां की हर बात निराली है

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जन्माष्टमी का त्यौहार नजदीक आते ही हर किसी का मन कान्हा की नगरी को जाने के लिए मचलने लगता है। कान्हा की नगरी यानि मथुरा, वृन्दावन जहां भगवान् श्रीकृष्ण से जुड़ी अनगिनत स्मृतियाँ मौजूद है। वैसे तो सालभर मथुरा आने वाले भक्तों का ताँता लगा रहता है मगर जन्माष्टमी के समय यहाँ की रौनक बस देखते ही बनती है।  राधे-राधे का नाम भजते कान्हा की भक्ति में डूबे झूमते-गाते उसके भक्त हर तरफ आपको कान्हा के जन्मोउत्सव की खुशियाँ मानते मिल जाएँगे। ऐसे में क्यों नहीं इस बार आप भी कान्हा की नगरी के भव्य एवं खुबसूरत मंदिरों के दर्शन कर आते है? जिनमें ख़ास क्या है ये आप हमारे इस लेख में पढ़ सकते है।
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बांके बिहारी मंदिर

Bainke Bihari Temple mathura

 

वृन्दावन धाम के रमण रेती में स्थित इस मंदिर का निर्माण सन 1864 में संत हरिदास जी ने करवाया था। संत हरिदास कृष्णभक्त एवं प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरु थे। मंदिर में आपको राजस्थानी शैली में की गयी नक्काशी का अद्भुत संग्रह देखने को मिलेगा।

मदन मोहन मंदिर

madan mohan mandir mathura

यमुना के तीरे निर्मित इस मंदिर के निर्माण के विषय में कहा जाता है कि इसका निर्माण मुल्तान (वर्तमान में ) के व्यवसायी रामदास कपूर ने करवाया था। जनश्रुति के अनुसार व्यापारी रामदास की नाव यमुना के तट पर बालू में फसं जाने से उसका काफी नुकसान हो रहा था। अपनी इस समस्या के के समाधान के लिए उसने प्रभु से प्राथना की और फिर जल्द ही उसकी समस्या समाप्त हो गयी। जिसके धन्यबाद स्वरुप रामदास ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।

गोविन्द देव जी मंदिर

govind dev temple mathura

 

वृन्दावन धाम में स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसे भूतों ने बनाया था। शुरुआत में यह मंदिर सात मंजिला था जिसकी भव्यता एवं सुन्दरता काफी आकर्षक थी। लोगों का मानना है की ऐसा मंदिर बनाना इंसानों के बस की बात नहीं इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण भूतों ने किया था। वहीँ कई लोग इसके निर्माण में आमेर के राजा मान सिंह का विशेष योगदान होने की बात भी कहते है। सात मंजिला ये मंदिर अब सिर्फ तीन मंजिला ही बचा है। कहते है की इस मंदिर की छत पर जलने वाले दीयों की रौशनी वृन्दावन से दिल्ली तक स्पष्ठ प्रकाश उत्पन्न करती थी जिसे देखकर अहम में आये औरंगजेब ने इसकी ऊपर की चार मंजिले गिरवा दी थी। बाद में इस सब से डरे मंदिर के पुजारी यहाँ स्थापित भगवान् की मूर्ति लेकर जयपुर चले गए थे बाद में वहां के राजा ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था

निधिवन मंदिर

Nidhivan mandir mathura

यह मंदिर मथुरा में यमुना किनारे चीरे घाट पर स्थित है इस स्थल को कृष्ण के लीला स्थलों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि रोजाना सांध्य के बाद राधा एवं श्रीकृष्ण गोपियों संग यहाँ महारास करते है। इस कारण यहाँ सांध्य के समय जाना निषेध है। राधा कृष्ण की रासलीला को देखने की लालसा से रात्रि के समय यहाँ आने या रुकने वाले भक्तों के साथ कई अजीबों गरीब घटनाएँ हो चुकी है। यहाँ आस-पास के मकानों में खिड़कियाँ बनवाना भी मना है। इस मंदिर से जुड़े ऐसे कई रहस्य है जिनकी गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा पाया।

पगला बाबा मंदिर

Pagla Baba Temple mathura

मथुरा से वृन्दावन के मार्ग में बने इस भव्य मंदिर की चमक किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती है। प्रसिद्ध कहानी के अनुसार साहूकार से लिए ऋण के झूठे मुक़दमे में फसें एक ब्राहमण के लिए जब किसी ने भी गवाही नहीं दी, तब ठाकुर भक्त ब्राहमण के लिए एक वृद्ध के रूप में स्वयं श्रीकृष्ण ने आकर गवाही दी थी। बाद में जब न्यायाधीश ने ब्राहमण से उस वृद्ध के बारे में पूछा तो ब्राहमण ने उनका परिचय अपने भगवान् के रूप में दिया जिससे पहले तो न्यायधीश महोदय काफी हँसे। मगर बाद में स्वयं ही वे सांसारिक मोहमाया त्याग कृष्ण भक्त हो गए और सालों अदृश्य रहने के बाद पुनः वृन्दावन में मिले थे। उन्हें ही पगला बाबा के नाम से जाना जाता है।

श्री वृंदाकुंड

Vrinda devi temple mathura

राधा रानी की सखी वृंदा जिनके नाम से वृन्दावन का नाम है उसका एक मंदिर नंदगांव में स्थित है कहां जाता है कि राधा एवं कृष्ण यहाँ मिला करते थे। उनके मिलने के सारे प्रबंध वृंदा देवी ही करती थी बैकुंठ में यही वृंदा तुलसी का ही रूप मानी गयी। इनकी यहाँ स्थित मूर्ति में बांये हाथ में एक पीले रंग के तोते की प्रतिमा भी है जिसके विषय में कहा जाता है की वो वृंदा रानी का तोता था एवं दिन-भर वृन्दावन के चक्कर काट सांध्य के समय नगर की सारी बातें वृंदा रानी को दिया करता था।

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  1. Your posts are very informative and to the point.I hope you verify historical facts before posting it here.keep doing this excellent contribution to increase the wisdom of all railyatri users.

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