भारतीय रेल की किसी भी लम्बी यात्रा के दौरान हमारी एक महत्वपूर्ण चिंता सफर के दौरान मिलने वाले अनिश्चित भोजन सेवा के प्रति होती है। यहां ऐसा कहना इसलिए गलत न होगा क्योंकि कई बार ज्यादातर रेलयात्रियों का अनुभव इस सेवा को लेकर काफी निराशाजनक रहा है। ज्यादा रूपये खर्च करने के बावजूद कई बार रेलयात्रियों को संतोषजनक सेवा नहीं मिलती है और अगर किस्मत खराब हुई तो तबियत खराब हो जाना पक्का है। फिर बात भले रेलवे कैंटिन के भोजन की हो या फिर रास्ते में पड़ने वाले किसी स्टेशन के फूड वैंडर की।
समस्या से समाधान तक-
सोलापुर महाराष्ट्र के कोच्चर परिवार को भी जब कई बार रेलवे के खाने की खराब क्वांलिटी के चलते परेशानियां झेलनी पड़ी तो उन्होंने इस समस्या का हल खोजना शुरू कर दिया। उन्होंने समस्या को जस का तस छोड़ने की बजाए अपने स्तर से इसका समाधान खोज निकाला। इस परिवार ने अपने प्रयासों से एक ऐसी भोजन सेवा शुरू की जिसने रेलयात्रियों की इस समस्या को काफी हद तक सुलझा दिया। इनकी फूड सर्विस आज कई रेलयात्रियों की सफर के दौरान होने वाली भोजन संबंधी समस्या का पूर्ण समाधान बन चुकी है।
तीन लोगों के इस छोटे से परिवार ने साल 2015 में अपने घर से रेलयात्रियों को साफ-सुथरा एवं स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन पहुंचाने की सेवा शुरू कर दी। उन्होंने इस सेवा का नाम ‘खाना घर का‘ रखा। यह एक ऐसी भोजन सेवा है जिसमें लोगो को स्वादिष्ट भोजन तो मिलता ही वो भी इस नियत के साथ की ये व्यवसाय नहीं बल्कि उस समस्या का समाधान है जिसका अनुभव कोच्चर परिवार स्वयं कई बार कर चुका था।
आसान नहीं थी शुरूआत-
अपने जीवन के पांच दशक पार कर चुके कोच्चर दंपति के लिए हालांकि इस प्रकार की चुनौती को स्वीकार करना आसान नहीं था। स्वयं का ठीक-ठाक का व्यवसाय होने के बावजूद इस प्रकार की सर्विस को उनके दोस्तों-रिश्तेदारों ने एक प्रकार की परेशानी को मोल लेना ही बताया। मगर कोच्चर दंपति के लिए उनका कड़वा अनुभव एवं स्वयं से किया वादा अधिक महत्वपूर्ण था। ऐसे में उन्होंने किसी की भी बातों पर गौर न कर ‘खाना घर का‘ की सेवा शुरू कर दी।
‘खाना घर का’ की टीम एवं उनका दिनचर्या-
घर के मुखिया दिलीप कोच्चर का दिन, सुबह ताज़ी सब्जियां एवं अन्य जरूरी सामान खरीद कर लाने से शुरू होता है। उसके बाद वे किचन में अपनी पत्नी चंद्रा कोच्चर की भी सहायता करते है। चंद्रा ‘‘खाना घर का‘ की मुख्य शेफ है, जिनका काम घंटों किचन में खड़ी रहकर रेलयात्रियों के लिए विभिन्न व्यंजन बनाना है। कई बार तो इन्हें अपने मेहमानों के फरमाइशी व्यंजन भी बनाने पड़ते है।
मोना के हाथों में है आर्डर सिस्टम की कमान-
मौजूदा ऑनलाइन आर्डर सिस्टम द्वारा किसी मेहमान ने क्या आर्डर दिया है, किस गाडी की कौन सी बोगी में कितने फूड पार्सल देने है। कोच्चर दंपति इस काम को थोड़ा चुनौती भरा मानते थे। मगर उनकी बेटी मोना (स्टूडेंड) ने जो आज की ऑनलाइन तकनीकी को बखूबी समझती है इसे भी आसान कर दिया है। मेहमानों की आर्डर डिटेल सबसे पहले मोना कोच्चर के पास जाती है जो उसे अपने माता-पिता को समझाकर आर्डर पूरा करवाती है।
वहीं रेलयात्रियों को समय पर खाना मिल सके, डिलिवरी का ये काम दिलीप कोच्चर स्वयं करते है। फिर भले एक दिन में उन्हें कितनी ही बार रेलवे स्टेशन क्यों न जाना पडे़। अंत में इस सेवा के विषय में कोच्चर दंपति बस इतना ही कहते है कि जब रेलयात्री उन्हें उनकी सेवा के लिए एक सच्ची मुस्कान के साथ धन्यवाद देते है तो वो उनकी सेवा का सबसे संतोषजनक ईनाम होता है।
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