अफवाह या लापरवाही ?

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एक ऐसा रेलवे स्टेशन जहां 42 साल नहीं रूकी कोर्इ रेलगाड़ी।

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आप ने शायद भारत के ऐसे इकलौते रेलवे स्टेशन के बारे में सुना होगा जो तकरीबन 42 सालों तक बंद रहा। रेलयात्री पहली बार आपके लिए लेकर आया है उस रेलवे स्टेशन की कही अनकही पूरी दांस्ता हिन्दी में।

भारत का एक ऐसा रेलवे स्टेशन जहां 1967 से लेकर साल 2009 तक ना कभी कोर्इ रेलगाड़ी रूकी, ना ही कभी किसी रेलयात्री ने वहां से रेल टिकट खरीद कर अपनी यात्रा प्रारंभ की। जहां 42 सालों तक ना ही रेलवे का कोर्इ कर्मचारी तैनात था, ना ही आम तौर पर रेलवे स्टेशन में रेहड़ी खोमचे पर खाने-पीने की जरूरी चीजें बेचने वाला कोर्इ दिखार्इ दिया। इन सब की वजह थी साल 1967 में फैली एक अफवाह जिसके बाद उस रेलवे स्टेशन को भारतीय रेलवे ने अपने रिकार्ड में भूतिया रेलवे स्टेशन घोषित कर वहां कि लगभग सारी गतिविधियां बन्द कर दी थी-

पशिचम बंगाल के पुरूलिया रेलवे स्टेशन से लगभग 50 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र  का एक छोटा सा रेलवे स्टेशन ‘बेगुन्कोदार’ आजाद भारत के इतिहास में 42 वर्षो तक बंद रहने वाला अकेला रेलवे स्टेशन है। दरअसल साल 1967 की एक शाम वहां डयूटी पर तैनात एक स्टेशन कर्मचारी ने स्टेशन के आस-पास सफेद साड़ी में एक संदिग्ध महिला के साए को देखा था। कुछ ही समय बाद वह साया स्टेशन कर्मचारी की आंखो से अचानक ओझल हो गया। ऐसी भी अफवाह है कि शायद उस रेलवे स्टेशन के पास एक रेल दुर्घटना में कुछ समय पहले एक महिला की मौत हो गर्इ थी। वो उसी का साया था जिसे स्टेशन कर्मचारी ने देखा था

 इस घटना से डरे-सहमें स्टेशन  कर्मचारी ने घटना की चर्चा अपने साथ काम कर रहे अन्य कर्मचारियों से की। जिसके कुछ ही दिनों बाद स्टेशन कर्मचारी उस की भी रहस्मय हालात में मौत हो गर्इ थी। अचानक हुर्इ उस अनहोनी घटना ने स्टेशन कर्मचारी की कही बात को और बल दिया। अशिक्षा और पिछडे़पन से घिरा क्षेत्र होने के कारण आस-पास के ग्रामीणों ने रेलवे स्टेशन को मनहूस मानना शुरू कर दिया। इस सब से घबराए रेलवे कर्मचारियों ने भी वहां काम करने से मना कर दिया। जिसके बाद उस अफवाह ने जंगल में फैली आग का रूप ले लिया। जिस कारण किसी भी अन्य रेलवे कर्मचारी ने भी वहां जा कर काम करने से मना कर दिया।

कुछ ही दिनों के बाद उस रेलवे स्टेशन पर अजीब सा सन्नाट छा गया। अब ना तो वहां से सफर के लिए कोर्इ सवारी किसी रेलगाड़ी में चढ़ती, ना ही कोर्इ और इंसान उस स्टेशन की ओर आने की हिम्मत करता। जल्द ही रेलवे विभाग ने उस रेलवे स्टेशन को बिना किसी ठोस जांच के अधिकारिक रूप से बंद कर दिया। हालांकि उसके बाद वहां कोर्इ भी अप्रिय घटना नही घटी।

वर्ष 2009 के अगस्त महीने में स्थानीय ग्रामीणों की एक कमेटी की पहल पर तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने इस पूरे मामले को कोरी अफवाह बताकर वहां के लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए रेलवे स्टेशन से रेलगाडि़यों का परिचालन दोबारा से शुरू करने की घोषणा कर दी। उससे पहले पार्लियामेंट स्टैडिंग कमेटी के भूतपूर्व चेयरमैन वासुदेव आचार्य ने भी इस विवादित रेलवे स्टेशन पर संसद में बहस के दौरान अपने बयान में इसे कुछ रेलवे कर्मचारियों की साजिश बताया था। उनके अनुसार ये रेलवे स्टेशन दरअसल सुदूर ग्रामीण संथाल आदिवासियों के इलाके में पड़ता है। जहां उस समय काम कर रहे रेलवे कर्मचारियों का मन काम में नही लगता था। इसलिए उन्होनें ये झूठी कहानी गढ़ी थी।

3 सितंबर 2009 को 42 वर्षो बाद जब बेगुन्कोदार रेलवे स्टेशन पर ‘रांची हटिया एक्सप्रेस’ को रोका गया तो स्टेशन पर उत्सव जैसा माहौल था। लोग नाच गा कर अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे। हालांकि आज भी कर्इ स्थानीय लोगों के अनुसार ये रेलवे स्टेशन सच में श्रापित है जिस कारण आज भी यहां रेलवे का कोर्इ स्थायी कर्मचारी तैनात नहीं है। स्टेशन की सारी जिम्मेदारी पास के गांव में रहने वाले ढुल्लु महतो कि है जिसे एक टिकट की बिक्री पर विभाग से एक रूपया मिलता है। अपने डर पर काबू करने के लिए महतो ने स्टेशन में देवी-देवताओं की अनेकों तस्वीरे लगा रखी है। साथ ही शाम के 6 बजते ही वह भी स्टेशन से चला जाता है। वही कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि रेलवे कर्मचारियों ने झूठी अफवाह फैला कर स्थानीय लोगों के विकास को बरसों रोके रखा। फिलहाल इन सब बातों से किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंच पाना मुश्किल है लेकिन रेलयात्री डाटइन जल्द ही अपनी अगली स्टोरी में आपको ये बताने का प्रयास करेगा कि ये   लापरवाही  थी     या  अफवाह।

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