कहते हैं कि अगर किसी इंसान ने अपने शौक को अपना पेशा बना लिया तो फिर उसकी बनाई हर चीज़ यक़ीनन लाजवाब होती है। हालाँकि हिंदुस्तान में आज भी अपने शौक/हुनर को जीने वाले लोग कम ही मिलते हैं। अक्सर शुरुआत में हीं परिवार वाले, दोस्त-रिश्तेदार ऐसे लोगों के सपनों के बारे में सुनकर हँस देते है। उनका मज़ाक बना देते है। वहीं कुछ ऐसे विरले परिवार भी होते है जो उस शख्स के सपनों इरादों को गंभीरता से समझते है, भाप लेते हैं कि इसने जो करने कि ठानी है ये उसके काबिल है। और उस क्षेत्र में एक अच्छा मुकाम हासिल कर सकता है जिसकी ललक, जिसका हुनर वो उनके सामने पेश कर चुका है। ऐसे ही पाक कला के एक हुनरमंद शख्स हैं मोहनजीत सिंह !
ऐसे हुए मोहनजीत की स्वाद से दोस्ती
गुरदासपुर पंजाब के रहने वाले मोहनजीत सिंह भी ऐसे ही एक शख्स है। अपने बचपन के शौक को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाने वाले मोहनजीत ने खुद को उस काम से जोड़ लिया जिसके लिए वे अपने स्कूल के दिनों से ही कई जगह प्रसिद्धी पा चुके थे। पंजाबी परिवार में जन्मे मोहनजीत को बचपन से ही तरह-तरह के व्यंजन, पकवान खाने का बेहद शौक था।
वैसे भी कोई विरला ही होगा जिसे पंजाबी व्यंजन न पसंद हो।! मोहनजीत बताते है कि स्वाद को समझने का ये सिलसिला तब गंभीर मोड़ लेने लगा जब एक से बढ़कर एक पंजाबी व्यंजन खाने वाले मोहनजीत अक्सर अपनी माँ को उसके परिवार के लिए उन व्यंजनों की तैयारी करते देखते। ऐसे में उन्हें जब ये बात समझ में आने लगी कि खाना “खाना” आसान होता है मगर बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, तो उन्होंने रसोईघर में अपनी माँ का साथ देना शुरू कर दिया। और फिर माँ कि देख-रेख में मोहनजीत की एक नायाब शेफ बनाने कि बुनियादी ट्रेनिंग शुरू हो गई।
अपनों के साथ ने बनाया कामयाब
शुरुआत में हालाँकि घर के सभी सदस्यों को लगता था कि ये मोहनजीत के कुछ दिनों का उत्साह है जो जल्द ही ठंडा पड़ जाएगा। मगर समय के साथ मोहनजीत ने पाक कला में अपनी रचनात्मकता का खेल दिखाना शुरू कर दिया। अब रोज़ाना वे एक से बढ़कर एक लज़ीज़ व्यंजन बनाने लगे। घरवाले भी समझ गए कि उनके बेटे में इस कला कि ग़हरी पकड़ होती जा रही है। फिर उसके बाद तो मोहनजीत अपने परिवार के अलावा दोस्तों, रिश्तेदारों में अपनी एक अलग पहचान बनाने लगे और देखते ही देखते सभी उसके बनाए व्यंजनों के मुरीद हो गए।
सीखी पेशे की हर बारीकी
सभी के भरपूर समर्थन और प्रोत्साहन ने मोहनजीत को काफी आत्मविश्वास दिया। मोहनजीत ने अपने खाने-पकाने के शौक को ही जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाने का निश्चय कर लिया। होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए उन्होंने गोवा के प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला लेकर पेशे की बारीकियां सीखी। अब उनका लक्ष्य अपने मेहमानों को स्वादिष्ट व्यंजनों परोसने के साथ-साथ पेशेवर मेहमाननवाजी से उनका दिल जितना भी था। अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद मोहनजीत ने कई प्रतिष्ठित “ग्रुप ऑफ़ होटल्स” में विभिन्न पदों पर काम कर होटल इंडस्ट्री से जुड़े गहरे अनुभव बटोरें। इस सबके बाद साल 2011 में मोहनजीत ने गोवा में स्वयं के रेस्टोरेंट रेडकार्पेट की शुरुआत की।
आज भी स्वयं बनाते है लज़ीज़ व्यंजन
मोहनजीत के इस पूरे सफ़र में जो सबसे शानदार बात रही वो है, मोहनजीत का अपने काम से प्यार! उन्होंने खुद का रेस्टोरेंट शुरू करने के बाद भी मालिक बनकर बैठने की बजाए किचन को अपना ठिकाना बनाया। आज भी वे रोज़ाना अपनी किचन टीम के साथ घंटों खड़े होकर उनके यहाँ आने वाले मेहमानों के लिए लज़ीज़ व्यंजन बनाते हैं। मोहनजीत कहते हैं “हां ! बाकी कार्यों को सँभालते हुए मैं अब कम कुकिंग करता हूँ ” मगर मेरा पकाने का शौक कभी ख़त्म नहीं होगा |”
गोवा में है दो शानदार रेस्टोरेंट
फिलहाल गोवा में रेड कार्पेट की दो ब्रंचास है जहाँ आप खालिस पंजाबी व्यंजनों के अलावा नार्थ इंडियन, चाईनीज, नॉनवेज एवं बेहतरीन स्नैक्स का भी मज़ा लें सकते हैं।
रेलयात्रियों को भी मिलता है यहाँ का लज़ीज़ स्वाद
रेलयात्री डॉटइन ऐप्प एवं रेड् कार्पेट रेस्टोरेंट साथ मिलकर रेलयात्रियों को भी रेड् कार्पेट रेस्टोरेंट के लज़ीज़ व्यंजनों का स्वाद पहुंचा रहे हैं। रेस्टोरेंट रोजाना सैकड़ों रेलयात्रियों को अपनी सेवाएँ उपलब्ध कर रहा है।
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