इंसान और पशु-पक्षियों का रिश्ता लगभग उतना ही पुराना है जितनी हमारी सृष्टि। हालांकि बदलते दौर एवं इंसान की बढ़ती जरूरतों के चलते इस रिश्ते के बीच की दूरी बढ़ गई है। मगर आज भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो इस रिश्ते की कद्र बड़ी शिद्दत से करते है। अपने बेजुबान दोस्तों का ख्याल रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते। फिर भले वो भारी-भरकम हाथी हो या फिर लोक कथाओं में बदनाम चमगादड़ जिसे नजाने क्यों लोग अपशकुनी मानते है। वहीं इसके विपरीत पढि़ए उन गांवों की कहानियां जहां पशु-पक्षी को मिलता हैं विशेष महत्व एवं खास लाड-प्यार-
कुंडा गांव- जयपुर, राजस्थान
यहां है हाथियों का स्वर्ग
वैसे तो पूरे राजस्थान में लगभग 40,000 गांव है। मगर जब बात किसी ऐसे गांव की हो जो हाथियों के लिए स्वर्ग है तो कुंडा के निकट निर्मित ‘‘हाथी गांव‘‘ किसी पहचान का मोहताज नहीं। यहां की पहचान इसके प्यारे हाथी है। दरअसल राजे-रजवाड़ों के इस रंगीले देश में हाथियों को पालने का प्रचलन बहुत पुराना है। मगर समय के साथ इस विशालकाय जीव का पालन पोषण बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण हो गया है। जबकि यहां बसी महावत बिरादरी जिसका ये पुश्तैनी पेशा है वो इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं। इसी सिलसिले में इस बिरादरी ने कई बार राज्य सरकार से अपनी बिरादरी एवं हाथियों के उचित पालन-पोषण की मांग की। जिसके बाद साल 2010 में राज्य सरकार ने जयपुर के समीप कुंड़ा में हाथी गांव का निर्माण पर्यटन की दृष्टि से करवाया।
120 बीघा जमीन पर फैले इस गांव में हाथियों और उनके महावतों के परिवार के लिए लगभग वो सारी सुविधाएं हैं जिनकी उन्हें जरूरत है। फिलहाल यहां 110 के करीब हाथी है। जबकि शुरूआत में यहां 51 हाथी ही थे। महावत बिरादरी के प्रमुख अब्दुल रशीद के अनुसार- ‘‘गांव के नजदीक स्थित आमेर के किले को देखने हर साल लाखों देसी-विदेशी सैलानी आते हैं जिनकी तमन्ना इस किले को हाथी की सवारी करते हुए देखने की होती है।”
गांव में हाथियों के लिए रहने के उचित स्थान, नहाने के लिए एक खूबसूरत स्वीमिंग पुल है। यहाँ हाथियों के लिए पशु चिकित्सकों की एक टीम भी है। सभी हाथियों को खाना मौसम के अनुसार दिया जाता है। किसी भी महावत से अपने हाथी को पहचानने में कोई गलती न हो इसके लिए हाथियों के कान में एक माइक्रोचीप भी लगी हुई है। जयपुर में बसी इस महावत बिरादरी के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इन्हें यहां बसाने का श्रेय राजा मानसिंह ‘प्रथम‘ को जाता है।
सरसई गांव- वैशाली, बिहार
यहां पूजे जाते अपशकुनी माने जाने वाले चमगादड़
‘चमगादड़‘ को साधारणता एक अपशकुनी जीव माना जाता है इस रहस्मय जीव के बारे में हमने कई भ्रांतियां पाल रखी है। मगर वहीं इस सब से अलग बिहार के वैशाली में एक गांव सरसई में इनकी रोजाना पूजा की जाती है। इन्हें नकारात्मकता का नहीं बल्कि सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। खुशहाली का कारक एवं बुरी शक्तियों से बचाने वाला रक्षक कहा जाता है।
सालों पहले सरसई गांव किसी जानलेवा बीमारी की चपेट में आ गया था उसी दौरान गांव में जाने कहां से हजारों चमगादड़ आकर बस गए। उनके यहां बसने के बाद जल्द ही वो जानलेवा बीमारी समाप्त हो गई। उस समय से रोजाना यहां के निवासी यहां बसे हजारों चमगादड़ों को देवतुल्य मानते है एवं रोजाना उनकी पूजा करते हैं। गांववालों का विश्वास हैं कि यहां बसे चमगादड़ गांव की ओर आने वाली किसी भी बुरी शक्ति को रोक देते है।
कोकरेबेल्लूर गांव- कर्नाटक
देसी-विदेशी पक्षी सारे है यहां के खास मेहमान
कर्नाटक के मद्दुर जिले में स्थित कोकरेबेल्लूर गावं के लोगो का पक्षियों से ऐसा प्रेम है कि उन्होंने अपने गांव का नाम सारस पक्षी के नाम पर रखा है। कन्नड़ में सारस पक्षी को कोकेरी कहा जाता है। गांववालो का ये प्रेम यहीं नहीं रूकता बल्कि यहां के ग्रामीण कई तरह के देसी-विदेशी पक्षियों के रखवाले पालनहार भी हैं। वो भी ये जानते हुए कि ये पक्षी उनके खेतों को ख़ासा नुकसान पहुंचाते है।
गांव में आपको विदेशी पक्षी पेलिकेन बगुला, छोटा जलकाग, सारस, ब्लैक इविस एवं अन्य कई देसी-विदेशी पक्षी बड़ी संख्या में देखने को मिल जाएंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक रगींन सारस एवं पेलिकेन पक्षी की संख्या तेजी से घट रही है। मगर यहां ये सारे बड़े आराम से रहते है। आमतौर पर जहां किसान अपने खेतों को इन पक्षियों बचाने के लिए सैकड़ों उपाय करते है वहीं यहां के किसानों को इन पक्षियों का न कोई डर हैं न चिंता बल्कि उन्होंने स्वयं ही इनके लिए विशेष स्थान तैयार कर रखा है जहां ये पुरी तरह सुरक्षित है।
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