यहाँ मिलता है श्राद्धकर्म का विशेष फल

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हिन्दु धर्म की मान्यताओं की जड़े कितनी गहरी एवं विशाल है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस धर्म के अनुयायी परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद भी उसके साथ होने का अहसास नहीं छोड़ते एवं हर वर्ष उनका श्राद्ध संस्कार करते है। ये संस्कार परिवार के उस मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए एवं उसका आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितरों के श्राद्ध करने से वे संतुष्ट होकर अपने परिवार को समृद्धि एवं खुशहाली का आर्शीवाद प्रदान करते है। यही कारण है कि देश के कई पवित्र धार्मिक स्थलों में पितृपक्ष के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर अपने पितरों का श्राद्ध करते है। आइये जाने देश के उन्हीं महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के बारे में-

वाराणसी, उत्तरप्रदेश-

shradh in banaras

हिन्दु तीर्थ स्थलों में श्रेष्ठ स्थान रखने वाली वाराणसी नगरी उन पवित्र स्थलों में से एक है जहां बड़ी संख्या में पिंडदान एवं श्राद्धकर्म आदि होते है। मोक्ष की नगरी वाराणसी में जहां लोग अस्थि विसर्जन के लिए हमेशा आते रहते है वहीं श्राद्ध संस्कार के लिए भी यहां हर वर्ष हजारों लोग देश-विदेश से पहुंचते है।

कुरूक्षेत्र, हरियाणा-

shradh in kurushetra

किसी भी भारतीय के लिए कुरूक्षेत्र का नाम अनसुना नहीं है। हरियाण राज्य की ये वही धरती है जहां महाभारत का युद्ध हुआ था। इस स्थान के बिषय में मान्यता है कि युद्ध के दौरान एक साथ इतने लोगों की मृत्यु के पश्चात श्रीकृष्ण ने उनकी आत्मा की शांति के लिए सभी मृतकों का कौरवों द्वारा यहां पिंडदान एवं श्राद्धकर्म करवाया था इसलिए इस स्थान पर किए गए पिंडदान एवं श्राद्धकम का हिन्दू  धार्मिक संस्कारों में विशेष महत्व है।

गया, बिहार-

shradh in gaya

पिंडदान एवं श्राद्ध संस्कार के लिए यदि सबसे पहले किसी धार्मिक स्थल का नाम लिया जाता है तो वो है बिहार का गया नामक स्थान। गया को सम्मान से लोग गयाजी, गयापुरी भी कहते है। शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार भगवान राम के पिता महाराजा दशरथ सहित कई महान आत्माओं के पिंडदान यहां स्थित फल्गु नदी के तट पर हुआ था। रामायण एवं महाभारत में भी इस स्थान का उल्लेख है।

इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश-

shradh in alahabad

प्रयाग के तट पर गंगा, जमुना एवं सरस्वती नदी के संगम किनारे हर साल अनंत चर्तुदर्शी यानि भाद्र शुक्लपक्ष के दिन मेले का आयोजन किया जाता है। जिसे गणपति की विदाई समारोह एवं भगवान अनंत की पूजा होती है। इस दिन यहां एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमें अनेकों लोग शामिल होते है। उसके बाद यहीं में पिंडदान एवं श्राद्धकर्म आदि भी किये जाते है जो इसके दूसरे-तीसरे दिन शुरू होते है।

बद्रीनाथ, उतराखंड-

shradh in badrinath

इस तीर्थ स्थल के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान शिव को ब्रह्माहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में लोग यहां अपने पितरों का श्राद्ध करने पहुंचते है। बद्रीनाथ के समीप ब्रह्माकपाल नामक स्थान के बारे में मान्यता है कि यहां श्राद्ध करने से पितरों की आत्माओं को नर्कलोक से मुक्ति मिलती है। साथ ही यहां श्राद्ध करने वाले को गया से आठ गुणा ज्यादा पुण्य की प्राप्ति होती है।

जगन्नाथपुरी, उड़ीसा-

shradh in jagannath puri

वैसे तो जगन्नाथपुरी पुरी दुनिया में अपने अद्भुत मंदिर एवं रथयात्रा के लिए प्रसिद्ध है किन्तु बात अगर पितरों के श्राद्धकर्म की करें तो इस स्थान की भी खासी महता है। हर वर्ष पितृपक्ष के दौरान यहां भी अपने पूवर्जो का श्राद्धकर्म करने वालों की अच्छी-खासी संख्या देखने को मिलती है।

मथुरा, उत्तरप्रदेश-

shradh in mathura

भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा वैसे तो अपने कान्हा के सुंदर एवं भव्य मंदिरों के लिए जानी जाती है मगर वहीं यहां स्थित वायुतीर्थ नामक स्थान पर भी पिंडदान श्राद्धकर्म का विशेष महत्व है। हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर अपने पूर्वजों का श्राद्धकर्म करते है।

फल्गु नदी, गया की गंगा 

अकाल मृत्यु को प्राप्त जातक के श्राद्ध व  पिण्डदान का विशेष स्थान  

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