अजब, अनूठे, रहस्यमय एवं रोमांच से भरे गाँवों की कहानियां भाग- 7

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क्या कभी आपने घंटो, दिनों भूखे-प्यासे किसी रेगिस्तान, घने जंगलों या फिर बर्फ के पहाडों के बीच गुजारे है? वो भी देश की रक्षा के नाम पर। साल भर अनगिनत त्यौहारों को अपनों के साथ मनाते हुए क्या कभी आपको उन रणबांकुरों का ख्याल आया है जिनके कारण आपके जीवन में इन त्यौहारी की खुशहाली सुरक्षित है? जरा सोचिए कितने फिके होते होंगे उन परिवारों के त्यौहार जिन्हें कई बार सारे त्यौहार सरहद पर तैनात अपने बेटे, भाई एवं पति के बिना मनाने पड़ते हैं और कई बार जब वो लौटते भी हैं तो तिरंगे में लिपट कर। दर्शन कीजिए देश के ऐसे चुनिन्दा गांवों के जहां के हजारों बेटे लगे है देश की सरहदों की सुरक्षा में-

Dhanuri village of army people

धनुरी गांव- राजस्थान

हर घर से है भारत मां के कई सपूत

राजस्थान के झुझुनू से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा मुस्लिम बहुल गांव धनूरी एक ऐसा गांव है। जहां के अधिकांश बाशिंदे सेना में है वो भी चार पीढ़ियों से। कहा जाता है कि सेना मे भर्ती से लेकर शहीदों तक की तादाद को लेकर ये गांव अव्वल है। स्थानीय बुर्जुगों की माने तो ये सिलसिला लगभग प्रथम विश्व युद्ध से जारी है। गांवों के अनेकों बेटों ने सन 1965, 1971 और फिर कारगिल की लड़ाई में भी हिस्सा लिया है और कई शहीद भी हो चुके हैं। मगर फौज में भर्ती होने का ये सिलसिला आज तक जारी है। अब तब गांव के 600 से ज्यादा बेटे फौज में भर्ती हो चुके हैं। गाँव के लोग फौज में कर्नल से ब्रिगेडियर तक के ओहदे तक अपनी सेवाएं दे चुके हैं। बावजूद इसके गांव में न तो उनके पराक्रम का कोई स्मृति चिन्ह मिलता है न किसी फौजी की मूर्ति। हालांकि गांव वालों ने अपने प्रयास से यहां के एक स्कूल का नाम शहीद मेजर एम एच खान के नाम पर रखा है।

ग्यागंज गांव- मध्यप्रदेश

एक ही सपना, देश की रक्षा में समर्पित जीवन हो अपना

Gyagganj army village in madhya pradesh

देश का दिल मध्यप्रदेश के सागर शहर से 7 किलोमीटर दूर बसा ग्यागंज देश के बाकि गांव से काफी अलग है। इस गांव में आमतौर पर आपको अनेकों नौजवान सुबह शाम वर्जिश करते, पसीना बहाते मिल जाएंगे। दरअसल सबका मकसद बस एक ही है सरहद पर जाकर देश की सेवा करना, भारतीय सेना में भर्ती होना। ग्यागंज गांव में लगभग 120 घर हैं। इन सभी घरों के ज्यादातर लोग भारतीय सेना में है। आज भी यहां के तकरीबन 90-95 युवक जहां फौज में है, वहीं 30 से 40 सेवानिर्वित फौजी है इस गांव में। फिलहाल गांव की नई पौध लगभग 2000 युवा सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे हैं।

गांव के लोगों का फौज में जाने का ये सिलसिला दरअसर सालों पुराना है जब गांव से सटे शूटिंग रेंज में गांव वाले अक्सर फौजियों को अभ्यास करते देखते एवं उनसे उनकी बहादुरी एवं देशभक्ति के किस्से कहानियां सुनते। बस फिर क्या था देखते ही देखते देशभक्ति का ये जादू गांववालों के सिर चढ़ बोलने लगा। फलत: आज ये गांव पूरे प्रदेश के साथ-साथ देश के नक्शे पर फौजियों के गांव के नाम से प्रचलित है। गांववालों का फौज में भर्ती होने के पीछे ऐसा जूनून है कि घर के एक बेटे के शहीद होने के बाद घरवाले दूसरे बेटे को भी फौज में ही भेजा।

पुरूमलथेवनपटटी गांव- तामिलनाडु

शेरों से नहीं है कम हमारे दक्षिण का दम

purmalthevanpatti army men village in tamilnadu

अगर आप इस मुगालते में है कि भाई फौज में भर्ती होने का मतलब पंजाब हरियाणा का ही कोई पटठा कर सकता है तो शायद आप गलत हो। दक्षिण भारत के श्रीविल्लीपुत्तुर के पास स्थित पुरूमलथेवनपटटी नामक गांव के बारे में जानना भी आपके लिए बेहद जरूरी है। कहते है कि साल 1952 में गांव के एक नौजवान पेरूमल ने भारतीय फौज में भर्ती होने के लिए गांव छोड़ दिया था। और फिर 10 साल बाद 1962 में वापस गांव लौटने पर जब उसने गांववालों को भारतीय फौज की बहादुरी के किस्से सुनाए तो गांव के नौजवान खासे उत्साहित हुए। खेती-बाड़ी के काम से जुड़े अनेकों ग्रामीण नौजवानों ने तुरंत ही सबकुछ छोड़ भारतीय सेना में अपना जीवन बिताने का लक्ष्य साध लिया।

पेरूमल ने स्वयं भारतीय सेना में मेजर के पद तक अपनी सेवाएं दी, उनके पुत्र मेजर पी थीरूमल भी भारतीय फौज का हिस्सा हैं। वहीं गांव के कई नौजवान आज भी सेना की विभिन्न रेजीमेंट का हिस्सा है जिसमें कारगिल के वीरों के अलावा पिछले सालों श्रीलंका भेजी गई शांतिसेना के जवान भी शामिल है। फिलहाल 750 घर वाले इस गांव से 400 लोग सेना में हैं और गांव में 500 से ज्यादा भूतपूर्व फौजी हैं। यहाँ देशभक्ति का आलम ये है कि यहां की बेटियां भी अब भारतीय सेना में जाना चाहती है। और अपने पति के रूप में किसी फौजी से ही विवाह करने को प्राथमिकता देती हैं।

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