पीर-फकीरों के डेरे, यहां हर रंग सूफियाना है

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हिन्दुस्तान को हमेशा से ऐसे देश के रूप के जाना जाता है जहां की धरती पर कई सूफी पीर-फकीरों का आना हुआ। यहां आए पीर-फकीरों ने आपसी प्रेम और भाईचारे का जो संदेश दिया उसकी मिसाल आज भी उनके डेरों पर देखने को मिल जाती है जहां हिन्दु, मुस्लिम, सिख एवं ईसाई धर्म के लोग सजदा करते देखे जा सकते है।

शाहे समंदर पिया हाजी अली- मुंबई

haji ali dargah

मुम्बई के वरली में एक छोटे से टापू पर स्थित सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह है जहां हर कोई एक बार सज़दा करने जरूर आना चाहता है। इसका निर्माण सन 1431 में हुआ था। मान्यता है कि हाजी अली मूल रूप से उज्बेकिस्तान से थे और भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे। बाद में यहीं बस गए।

मुख्य आर्कषण-

दरगाह तक जाने के लिए एक समंदर एवं टापू के बीच एक पुल है। पुल की ऊंचाई काफी कम है जिस कारण यहां सिर्फ तभी जाया जाता है जब समंदर शांत होता हैए उस दौरान यहां का दृश्य काफी रोमानी लगता है।

निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह- दिल्ली

dargah nizamuddin auliya

मुख्य दिल्ली के निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन के नजदीक मथुरा रोड़ पर स्थित सूफी संत हजरत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह 14वी शताब्दी का माना जाता है। यहां देश.विदेश से सैकड़ो की संख्या में सभी धर्मो के लोग मुरादें मांगने से आते है। कहा जाता है यहां आने वाले हर ज़ायरीन की मुरादें पूरी होती है।

मुख्य आर्कषण-

प्रत्येक बृहस्पतिवार, रविवार एवं त्यौहारों के दिन मज़ार में शानदार कव्वली का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा यहां मशहूर कवि अमीर खुसरों एवं मुगल राजकुमारी जेहन आरा बेगम की कब्र भी है। शाम 5 से 7 बजे यहां विशेष रौनक देखने को मिलती है।

अजमेर शरीफ दरगाह- अजमेर

ajmer sharif dargah

अजमेर शरीफ दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जिन्हें गरीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता है, की याद में बनाई गई है। बाबा के बारे में कहा जाता है कि वे अफगानिस्तान एवं इराक के बीच चिश्ती नामक स्थान में जन्में थे। मक्का शरीफ की यात्रा के बाद वे भारत आकर बस गए एवं सभी धर्मो के लोगों के बीच आपसी भाईचारे का पैगाम देना शुरू किया।

मुख्य आकर्षण-

गौरतलब है कि यहां आने वाले विशेष मेहमानों को उनके धार्मिक ग्रन्थ कुरान शरीफ, श्रीमद भगवत गीता आदि भेंट कर भाईचारे का पैगाम दिया जाता है।

कछोछा शरीफ- अंबेदकर नगर

kichocha sharif dargah

उत्तर प्रदेश के अंबेदकर नगर स्थित हजरत मखदूम अशरफ समनानी की दरगाह देश की उन प्रसिद्ध दरगाहों में से एक है जहां साल भर अकीदतमंदो का जमावड़ा लगा रहता है। हजरत साहब का जन्म ईरान के सिमनान प्रांत में हुआ था। उन्होंने 13 साल की उम्र में सिमनान की हुकूमत संभाली थी बाद में गद्दी अपने छोटे भाई को सौप कर फकीरी की राह पर चल पड़े। पूरी दुनिया में सूफी विचारधारा का प्रचार.प्रसार करते हुए वे भारत आकर बस गए।

मुख्य आकर्षण-

कहा जाता है कि हजरत साहब जब यहां आये तब स्थानीय लोग कई तरह की बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्होंने यहां एक सरोवर ष्नीर शरीफष् खुदवाया इस दौरान वे स्वयं वहां खड़े होकर कुरान की आयतें पढ़ते रहे। कहते है कि नीर शरीफ में नहाने वालों की सभी बीमारियां ठीक हो जाती है। आज इस सरोवर की प्रसिद्धि विदेश तक है।

सुल्तान-ए-अमरोहा- अमरोहा

sultan a amroha dargah

उत्तर प्रदेश के अमरोहा में स्थित सुल्तान.ए.अमरोहा के नाम से मशहूर हजरत सैयद शर्फुद्दीन शाह विलायती की मज़ार चमत्कार का जीता.जागता उदाहरण है। प्रसिद्ध किवंदती के अनुसार अरब देश में जन्में शाह विलायती जब मुरादाबाद आए तब इसकी खबर पीर सैय्यद नसीरूद्दीन को पहुंची। सैय्यद नसीरूद्दीन उनके यहां बसने से बेहद नाखुश थे और उन्हें वहां से चले जाने को कहा। सैयद शर्फुद्दीन शाह के ऐसा न करने पर सैय्यद नसीरूद्दीन ने उन्हें श्राप देते हुए कहा कि अगर वे यहां रहेंगे तो उनके चारों ओर बिच्छुओं की भरमार रहेगी। शाह विलायती ने उन्हें जवाब में कहा कि एक दिन बिच्छु ही उनकी प्रसिद्धि की वजह बनेगे।

मुख्य आकर्षण-

तब से लेकर आजतक इस मज़ार में हजारों ज़हरीले बिच्छू रहते है मगर हैरान करने वाली बात ये है कि ये खतरनाक जीव बाबा की मज़ार में आए किसी ज़ायरीन को कोई हानि नहीं पहुंचाते। यहां आने वाले लोग बड़े आराम से बिच्छुओं को अपनी हथेली पर ले लेते है। मज़ार से जुड़े लोग बताते है कि यहां आने वाले हर ज़ायरीन की मुरादें पूरी होती है।

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