फल्गु नदी- शाप, वरदान एवं मान्यताएं

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people performing Shradh at the bank of falgu

By Akshoy Kumar Singh

 

फल्गु नदी का सनातन व बौद्ध धर्म दोनों ही में समान महत्व है। यह नदी बोधगया में निरंजना के नाम से भी जानी जाती है। जनश्रुति के अनुसार इसके तट पर स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कृशक कन्या सुजाता ने उन्हें खीर खिलाकर मध्यम मार्ग अपनाने की सलाह दी थी।

कैसे हुई महानद फल्गु की उत्पति

ऐसा माना जाता है कि आज से 19 करोड़ वर्ष के आसपास जलवायु में अत्यधिक बदलाव के कारण उच्चभूमि की बर्फ पिघल कर जल प्रवाह के रूप में नदियों का स्वरूप धारण कर लिया। निर्माण की दृष्टि से पहले उच्च भूमि के रूप में- ‘गया’ की पृष्ठभूमि निर्मित हुई। जहां फल्गु का वास है।

वायु पुराण में भी है फल्गु की विशेषता का वर्णन

वायु पुराण के अनुसार फल्गु नदी सदेही विष्णु गंगा है। फल्गु नदी शाप और वरदान के दोआब से निःसृत है। यह सीता द्वारा शापित है। सीता के शापवश महानदी व्यर्थ, बेकार और सार शून्य फल्गु हो गयी है। मगर संजोगवश महानदी वरदान स्वरूप माता सीता ने उसकी बालू का पिंड देकर अमर, बहुव्याप्त और अपरम्पार रहस्यमयी भी बना दिया वर्तमान में भी इसके बालू से बने पिंडदान का हिन्दु धर्म में विशेष महत्व है।

यहां स्थित है कई धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहर

performing shradh with falgu's water

बोधगया में इसके तट पर कई धार्मिक एवं ऐतिहासिक धरोहर स्थित हैं। इस सब में सनातन मठ प्रमुख है। वहीं निरंजना के पूर्वी तट पर सुजातागढ़ अवस्थित है। जो भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां देश-विदेश के पयर्टक ढुंगेश्वरी से बोधगया आने के क्रम में पड़ाव डालते हैं एवं प्रसाद में खीर का पान करते हैं। गया से बोधगया की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है।

कई महान आत्माओं का यहां पिंडदान हुआ है

ज्ञातव्य है कि भगवान राम के अलावा युधिष्ठिर, भीष्म पितामह, मरिचि इत्यादि के द्वारा भी फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने की कथा अनेकानेक पुराणों में मिलती है। निरंजना और मुहाने के बीच में धर्मारण्य वेदी है जहां युधिष्ठिर ने अपने पितरों के मोक्ष के लिए पितृ यज्ञ किया था। यहां आज भी वह कुआं विद्यमान है जिसमें पितृकर्म के बाद उन्होंने पिण्ड विर्सजित किए थे। गया पंचकोशी क्षेत्र में धर्मारण्य सहित सरस्वती, मातंगवापी तीनों पिण्ड वेदी अवस्थित है।

भगवान ब्रह्मा ने ब्राह्मणों को दक्षिणा में दी थी महानद

यह भी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने गया में यज्ञ की पूर्णता के बाद ऋत्विग हेतू आये ब्राह्मणों को दक्षिणा में फल्गु नदी दी थी। जिसमें स्नान करने से 21 पीढ़ी के पितर तृप्त और मुक्त हो ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं। इसकी चर्चा महाभारत में भी की गई है। स्कन्दपुराण में महानद फल्गु को गया यत्र महापुराण फल्गुश्चेव महानदी कहा गया है।

सीताकुंड है पितृऋण से मुक्ति का विशिष्ट स्थान

Religiouse gathring at the bank of falgu

विष्णुपद मंदिर के पाश्र्व स्थित वैष्णव श्मशान के ठीक सामने महानद फल्गु के पूर्वी किनारे नागकूट पर्वत के पश्चिम तलहटी में बसा सीताकुंड पितृऋण से मुक्ति का विशिष्ट स्थान है। सीताकुंड रामायणकालीन जीवंत निधि है। प्राचीन वाड्ग्मय ने सीताकुंड में पिण्डदानादि का उत्तमोत्तम तीर्थ कहा है। 365 पिंड वेदियों में सीताकुंड पिंड वेदी सर्वप्रमुख है जहां बालू का पिंड दिया जाता है।

क्यों दिया था सीता ने फल्गु को श्राप

धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने यहां अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने आये थे। उस समय जब राम-लक्ष्मण पिंड सामग्री लाने गये तब छायारूप में महाराज दशरथ ने उपस्थित हो सीता से शुभ मुहूर्तं में पिंड की याचना की। और भोजन की मांग की। पिंड सामग्री के अभाव में दशरथ के कहने पर सीता ने महानदी समेत अन्य की उपस्थिति में बालू का पिंड बना कर दशरथ को दान किया था।

बरगद के पेड़ ने दिया था साथ, मुकर गए थे फल्गु एवं अन्य

gaya braham directing people to perform shradh

सीता द्वारा पिंडदान की बात का राम को विश्वास नहीं हुआ वे बेहद चिंतित एवं रुष्ट हुए। सीता ने साक्ष्य स्वरुप फल्गु नदी बरगद के पेड़, अग्नि, गाय, तुलसी और गया ब्राहमण से सच बोलने को कहा। बरगद के पेड़ ने सच्ची गवाही दी, लेकिन फल्गु नदी, गाय, गया ब्राह्मण एवं तुलसी राम के डर से मुकर गए। इससे नाराज सीता ने फल्गु को श्राप दिया था कि वह गया नगर में अपना पानी खो देगी, गाय के शरीर के सिर्फ पिछले हिस्से की ही महत्ता होगी, गया में तुलसी नहीं लगेगी एवं गया ब्रहामण प्राप्त दान से हमेशा असंतुष्ट ही रहेगा तथा अग्नि का कभी कोई मित्र नहीं होगा। वहीं सीता ने बरगद के पेड को आशीर्वाद देते हुए कहा की जो भी कोई यहाँ पिंडदान के लिए आएगा, वह तुम्हरी भी पूजा अर्चना अवश्य करेगा।

 

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