सूर्यपासना का प्रसिद्ध केन्द्र: देव सूर्य मंदिर

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भारतवर्ष पर्व-त्यौहारों की एक लम्बी एवं समृद्ध श्रृंख्ला वाला देश है। साल भर देश के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मो एवं संप्रदाय के लोगों द्वारा उनके पर्व त्यौहारों को काफी हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। बिहार का महापर्व ‘छठ’ ऐसा ही एक पर्व है। गौतम और महावीर की धरती से शुरू हुआ लोक आस्था का यह महापर्व  विशेष रूप से भगवान सूर्य कोे समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि सृषिट के सुचारू रूप से चलाने में उनके योगदान के लिए धन्यवाद स्वरूप प्राचीन काल से ही बिहार की धरती पर इसे मनाया जाता है।

बदलते समय-काल के साथ इस महापर्व की महिमा देश विदेश में फैल चुकी है। भारत का शायद ही कोर्इ ऐसा कोना बचा हो जो इससे अछूता हो। गौरतलब है कि, भारत के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के तरार्इ क्षेत्र में भी बड़ी आस्था के साथ ‘छठ’ मनाया जाता है। ऐसे में बिहार के औरंगाबाद सिथत प्राचीन ‘देव सूर्य मंदिर’ के बारे में जाने बिना ‘छठ’ पर्व का ज्ञान अधूरा सा है। विदित है कि ‘देव सूर्य मंदिर’ भारत का एक ऐसा सूर्य मंदिर है जहां एक साथ लाखों लोग हर वर्ष ‘छठ’ पर्व मनाते है। यह परंपरा सदियों से यहां निभार्इ जा रही है।

पवित्र नगरी गया से लगभग 100 किलोमीटर दूर औरंगाबाद शहर के 10 किलोमीटर दक्षिण में सिथत प्राचीन ‘देव सूर्य मंदिर’ की स्थापना 8वी सदी में उमगा के तत्कालीन चन्द्रवंशी राजा भैरवेन्द्र सिंह ने करवार्इ थी। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसके मुख्य द्वार का पूर्व के विपरीत पशिचम दिशा की ओर होना है। सामान्यत: सूर्य मंदिरों के मुख्य द्वार पूर्वदिशा की ओर होते है लेकिन यहां ऐसा नहीं है।

 मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर सिथत है सूर्य कुंड तालाब। जहां कार्तिक एवं चैत महीने में मनाए जाने वाले छठ पर्व के अलावा हर रविवार को भारी संख्या में श्रद्धालु स्नान कर भगवान भास्कर की पूजा करते हैं। इस तालाब के विषय में यह भी मान्यता है कि यहां स्नान करने से सफेद दाग की बीमारी सहित अनेक प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते है। वही तालाब के किनारे पर सिथत अनेक छोटे-छोटे मंदिर व पास बनी धर्मशालाए भी कुंड की खूबसूरती को बढ़ाती है।

इस मंदिर की आस्था का मुख्य आर्कषण है यहां सिथत भगवान ब्रम्हा, विष्णु एवं शिव की प्राचीन मूर्तियां जो सूर्य के तीनों रूपों यानि उदय काल में ब्रम्हा, मध्याहन के समय शिव एवं संध्याबेला में विष्णु का प्रतिनिधित्व करती है।

मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया गया था। भगवान विश्वकर्मा द्वारा एक ही रात में देव का सूर्य मंदिर, उमगा का रूद्र मंदिर एवं देव कुंड का निर्माण किया था। किन्तु सूर्य मंदिर के निर्माण के दौरान कौवे की आवाज सुन उन्हें सूर्योदय होने का संकेत मिल गया और मंदिर का कुछ हिस्सा अधूरा ही रह गया था।

इस मंदिर के विषय में एक और प्रचलित कथा राजा ऐल की है। एक समय वन भ्रमण में निकले राजा ऐल ने जब शौच जाने के लिए अपने सेवक से जल का प्रबंध करने को कहा तो बहुत देर खोजने के बाद सेवक के द्वारा लाए गए जल से राजा के शरीर में फैली सफेद दाग की बीमारी ठीक हो गर्इ। उनका शरीर सोने की भांति चमकने लगा। अपने शरीर के रोग को ठीक होता देख राजा ऐल काफी प्रसन्न हुआ। रात के समय स्वप्न में भगवान सूर्य ने उसे दर्शन दे कर बताया कि जिस गढढे के जल से उनके रोग समाप्त हुए है वहां मेरी मूर्ति है। उसे वहां से निकाल कर मेरे मंदिर का निर्माण करवा कर मूर्ति उस मंदिर में स्थापित किया जाए। उसके बाद राजा ने भगवान सूर्य के आदेशानुसार वैसा ही किया। वही मंदिर देव सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।