शाहजहां की तामीर भोपाल का ताजमहल

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By Shifalee Pandey

भोपाल को जानने वाले, इस शहर को झीलों के शहर से ज्यादा नहीं जानते। लेकिन बेगमों और नवाबों की अदबीयत में रहे भोपाल की छोटी बड़ी झीलों के किनारे सुनहरे इतिहास के कई रंग बिखरे पड़े हैं। पहनावे, खानपान के साथ इस नवाबी शहर का दरीचा उस इमारत में भी खुलता है जो एक बेगम की मोहब्बत की आखिरी निशानी थी।

कम लोग जानते हैं कि हिंदुस्तान में दो ताजमहल है। पहला शाहजहां का बनाया आगरा का ताजमहल और दूसरा बेगम शाहजहां की तामीर भोपाल का ताजमहल। इत्तेफाक देखिए कि दोनों ही शाहकार शाहजहां नाम की दो शख्सियतें थी जिनके बनाये दोनों ही ताजमहल की मीनारे मोहब्बत का परचम बुलंद करती मालूम पड़ती है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि एक ताजमहल बेगम मुमताज की कब्र है और दूसरा ताजमहल बेगम शाहजहां और नवाब सिद्दीक हसन की मोहब्बत से गुलज़ार जिंदगी की शुरुआत का गवाह।

ताजमहल…शाहजहां बेगम का जमीं पर उतरा ख्वाब

तेरह साल बाद बनकर तैयार हुए इस ताजमहल की नींव सन 1870 में रखी गई थी। करीब सत्रह एकड़ में फैला ये ताजमहल शाहजहां बेगम के प्यार का आशियाना था। जहां वो नवाब सिद्दीक हसन के साथ अपनी ज़िन्दगी गुज़ारना चाहती थी। माना जाता है कि उस दौर में इसे बनवाने में महज़ तीस लाख का खर्च आया था। जनश्रुतियों के मुताबिक सिद्दीक हसन शाहजहां बेगम के साथ यहां लंबा वक्त नहीं गुजार पाए। जबकि शाहजहां बेगम ने ताजमहल में अपनी आखिरी  सांस ली थी।

…ताकि देख सके खुदा का घर

Taj Mahal Bhopal - Mosque

बेगम का ख्वाब था कि वो ताजमहल से खुदा का घर देख सकें इसीलिए बेगम ने एशिया की दूसरी सबसे बडी ताजुल मस्जिद की मीनारें खड़ी करवाईं। साथ ही ताजमहल के झरोखे भी इस तरह के  बनवाए कि वहां से ताजुल मस्जिद साफ-साफ दिखाई दे। अब भी ताजमहल से मस्जिद का दीदार वैसे ही होता है।

सिंधियों की शरणस्थली

Sindhi Refugee Camp
हालाँकि जिस तरह से आगरा के ताजमहल का रखरखाव हुआ। भोपाल के इस ताजमहल को वो साज संभाल कभी नसीब नहीं हो सका। नवाबों का दौर बीत जाने के बाद लंबे समय तक ये ताजमहल बंटवारे के बाद सिंध प्रांत से आए सिंधियों की शरणस्थली बना रहा। इस दौरान ताजमहल के कई हिस्से उन शरणार्थियों के रहते ही खराब हो चुके थे। दरवाजों पर लोहे और पीतल की नक्काशियां थी जिसे बाद में लोग निकाल कर ले गए।

बुलंद दरवाज़ा

Taj Mahal of Bhopal Buland Darwaza
ताजमहल में दाखिल होने पर एक झरोखा सा ही खुलता है, यानि दरवाजे के भीतर बना एक छोटा दरवाजा “बुलंद दरवाजा” जिसे पूरा खोल पाना आसान नहीं। इस दरवाजे का वजन हाथी के बराबर है और मजबूती भी लगभग उतनी ही। लिहाजा पूरा दरवाजा तब भी खास मौकों पर ही खुलता था और अब भी।

यहाँ सावन भादों – मौसम नहीं, एक हिस्सा है ताजमहल का

Taj Mahal - Bhopal

यहां जेठ-बैसाख के दिनों में भी सावन सा अहसास होता है। शाहजहां बेगम चाहती थीं कि सिद्दीक हसन और वो जब चाहें, बरसात अपनी पूरी ताब के साथ ताजमहल में उतर आए, बरस जाए। इसलिए सावन भादों के हिस्से को इस तरह से बनाया गया है कि इसके बीच से गुजरते वक़्त   दोनों तरफ झरने गिरते है, मानों बरसात की झड़ी सी लगी हो। अंदाजा लगाइए उस दौर की कारीगरी के करिश्मे का।

शीश महल है ताजमहल की दूसरी खूबी

Sheesh Mahal - Taj Mahal, Bhoppal

नाम के मुताबिक ताजमहल के इस पूरे हिस्से में शीशे की नक्काशी है। नवाबी दौर खत्म हो जाने के बाद सबसे ज्यादा नुकसान भी ताजमहल के इसी हिस्से का हुआ। हालाँकि सरकार ने इसे दुबारा वही रंगत देने की भरपूर कोशिश की है।

बुरी नज़र से बचाने का टोटका

कहते है की बेगम शाहजहां ने इस महल का निर्माण अपनी देख-रेख में करवाया था। जैसे कोई मां अपने बच्चे की परवरिश करती है। लिहाजा उन्हे चिंता थी कि उनकी मोहब्बत की इस निशानी को किसी की नज़र न लगे। इसके लिए बेगम ने महल के दरवाजे पर सूरज की तरफ मुँह करके एक बड़ा सा आईना लगवा दिया था ताकि जो कोई भी बुरी नज़र से ताजमहल को देखे कांच से टकराकर आती सूरज की किरणों से उसकी आंखे चौंधिया जाए। हांलाकि ताजमहल को बुरी नज़र से बचाने की ये कोशिश भी बेगम के साथ ही खत्म हो गईं।

आज ये ताजमहल, एक बेगम की मोहब्बत की आखिरी निशानी सैलानियों की बाँट जोहता खामोश खड़ा है। फर्क सिर्फ इतना है कि शाहजहां की मुमताज बेगम से बेइंतहा मोहब्बत की निशानी आगरा का ताजमहल पूरी दुनिया में मोहब्बत की मिसाल बन गया और एक नवाब से बेइंतहा मोहब्बत करने वाली एक बेगम की ज़िद में खड़ी हुई ये इमारत सदियों से गुमनाम ही रहीं। और दफ्न होती रहीं इसकी दीवारों में सिद्दीक हसन और शाहजहां बेगम के इश्क की कहानियां।

 

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