भारतीय खान-पान की रंग-बिरंगी अनोखी संस्कृति में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से अरूणाचल प्रदेश तक हमारी चाय का स्वाद ही ऐसा अनोखा स्वाद है जो विभिन्न धर्म-जाति, समुदायों के लोगों को आपस में जोड़ती है। दूसरी तरफ देश के विभिन्न इलाकों में मिलने वाली अलग-अलग चाय के रूप और स्वाद हमारी विविधता के प्रतीक हैं। कभी गौर कीजिये इसकी महक में आपको हमारे लोकतंत्र की खुशबू मिलेगी और इसकी चुस्कियों में हर सुख-दुख का सार!
तो……..सर्दी के सुहावने मौसम में मज़ा लीजिये- हिन्दुस्तान की कुछ मुख्तलिफ़ चाय की चुस्कियों का-
गुर-गुर चाय- लद्दाख एवं हिमालय
जाड़े के जमा देने वाले मौसम में जहाँ आम भारतीय गर्म तासीर वाले खान-पान से खुद को महफूज़ रखने की कोशिश करता है। वहीं तिब्बत, लद्दाख एवं हिमालय के क्षेत्रों के ठंडे इलाकों में रहने वाले लोग पीते हैं अनोखी गुर-गुर चाय।
याक के दूध, बटर एवं एक खास किस्म की पत्तियों से तैयार की जाने वाली इस चाय में चीनी की जगह नमक का इस्तेमाल किया जाता है। एक जानकारी के अनुसार यहाँ के स्थानीय निवासी एक दिन में 30 से 40 कप गुर-गुर चाय पी लेते हैं। ठंड से राहत देने के अलावा ये चाय सर्दियों में त्वचा को खुश्क होने से भी बचाती है। नमक का इस्तेमाल शरीर के अतिरिक्त पानी को सोखने के लिए किया जाता है ताकि जाड़े के मौसम में बार-बार बाथरूम जाने की समस्या से बचा जाए। गौरतलब है कि ये ठंडे प्रदेशों का एक पुराना टोटका है जब लोगो के घरों में बाथरूम नहीं होते थे या फिर बाथरूम घर के बाहर एक कोने में बनाए जाते थे। तब नमक का इस्तेमाल इसलिए किया जाने लगा ताकि बार-बार बाथरूम जाने से बचा जा सके।
शीर चाय- कश्मीर
हिंदुस्तान की जन्नत कश्मीर में भी चाय के कई अलग-अलग रूप और स्वाद हैं। यहाँ पर आपको स्थानीय शीर चाय की चुस्कियों के साथ गप्पे लड़ा रहे कई लोग मिल जाएंगे। मुगलों के साथ हिंदुस्तान आई इस चाय को नून चाय भी कहा जाता है। शीर उर्दू का एक शब्द जिसका अर्थ दूध होता है। इसमें डाली जाने वाली सामग्री में कश्मीरी चायपत्ती, पानी, मीठा सोडा, छोटी इलायची, जावित्री, नमक एवं चीनी के अलावा एक गिलास ठंडा पानी अलग से और सजाने के लिए ड्राई फ्रूट्स का भी इस्तेमाल होता है। इसके स्वाद को और बेहतर बनाने के लिए इसमें दूध क्रीम भी डाली जाती है। इसका रंग देखने में काफी खूबसूरत गुलाबी होता है। वहीं इसे बनाने के लिए आपके पास अच्छा-ख़ासा वक्त होना जरूरी है क्योंकि इसे आम चाय की तरह पांच मिनटों में नही बनाया जा सकता। इसे बनने में घंटो का वक्त लगता है।
ईरानी चाय- हैदराबाद
दशकों पहले ईरान से भारत आए अनेकों ईरानी परिवार अपने साथ अपनी संस्कृति एवं खान-पान की लाजवाब सौगात भी साथ लेकर आए थे। उन्हीं में से एक खास चीज़ है इनकी ईरानी चाय! भारत में मुंबई के रास्ते पुणा होते हुए हैदराबाद पहुंची से चाय वहाँ अपनी खास पहचान बना चुकी है। यहाँ इस ईरानी चाय के कई रेस्टोरेंट एवं कैफे हैं।
पारंपरिक भारतीय चाय से थोड़े अलग तरीके से बनने वाली ये चाय आमतौर पर दो-चार लोगों की बजाय एक साथ कई लोगों के लिए बनाई जाती है। दरअसल इसे बनाने में भी अच्छी-खासी मेहनत और समय लगता है। चायपत्ती के साथ चुनिंदा मसालों के मिश्रण को तकरीबन बीस मिनट तक धीमी आंच में पकाया जाता है और दूध को अलग से धीमी आंच पर पका कर गर्म किया जाता है। इसमें पड़ने वाले मसाले को गोलकी, दालचीनी, बदिएन खटाई, कालीमिर्च पाउडर एवं छोटी इलायची से तैयार किया जाता है।
चाय के पानी को अच्छी तरह 15-20 मिनट उबालने के बाद अलग से काढ़े गए दूध में मिलाया जाता है। कहते हैं कि इसका दूध जितना गाढ़ा होगा चाय का स्वाद उतना ही बेहतरीन होगा। स्वाद को बढ़ाने के लिए उसमें मावा या फिर दूध क्रीम ऊपर से डाला जाता है। आमतौर पर इसे हैदराबाद के फेमस उस्मानिया बिस्किट के साथ पिया जाता है।
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