अजब, अनूठे, रहस्यमय एवं रोमांच से भरे गाँवों की कहानियां भाग -3

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Unique Villages

यहाँ सांप दुश्मन नहीं दोस्त है, देवता है-  शेतपाल गाँव

Shetpal VIllage

आमतौर पर अगर किसी को सांप दिख जाए तो उसका डर जाना स्वाभाविक है। शहरों में तो आज भी सांप दिखने की खबर सुनकर लोग खासे चैकन्ने हो जाते है। उसके बाद जो तमाशा होता है देखते ही बनता है। मौका मिला तो सांप दिखने की खबर को मीडिया की सुर्खियां बनते भी वक्त नहीं लगता। जबकि पुणे से लगभग 200 किलोमीटर दूर शोलापुर जिला के ‘शेतपाल‘ गांव में लोग सांपो के साथ ऐसे घुल-मिल कर रहते है जैसे ये उनके घर की पालतू गाय या कुत्ता हो। यहां के घरों, गलियों में आपको कई प्रकार के खतरनाक सांप टहलते मिल जाएंगे जहरीले किंग कोबरा भी यहां बड़ी तादाद में पाए जाते है। यहां के लगभग सभी घरों में सांपों के लिए बकायदा एक साफ-सुथरा स्थान बना हुआ है जिसे स्थानीय लोग देवस्थानम कहते है। हैरानी की बात ये है कि खतरनाक ज़हर से लबालब ये सांप कभी किसी को नहीं काटते।

आज तक गांव में सांपों के काटने की कोई घटना नहीं हुई। ये स्थानीय लोगों का सांपों के साथ लगाव, प्यार और उनके प्रति आस्था ही है कि उनके घरों में अनगिनत सांप रहते है। जबकि ये कोई सपेरों की बस्ती नहीं है। अब तो आलम यह है कि कई देसी-विदेशी सर्प विशेषज्ञ यहां आकर इस रहस्य को समझने का प्रयास कर रहे हैं।

नजदीकी रेलवे स्टेशन- शोलापुर

शोलापुर के लिया रेलगाड़िया

 

यहां कभी बस्ता था  मिनी   लन्दन- मैक्लुस्कीगंज

Mccluskiegunj Village

आजादी के बाद भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का भले ही अंत हो गया हो। पर ऐसे कई ऐग्लों इंडियन परिवार थे जिन्होंने उस वक्त में यहां पूरा गांव ही बसा लिया था। रांची से 65 किलोमीटर दूर ‘‘मैक्लुस्कीगंज‘‘  ऐसा ही एक गांव है। 1930 के दशक में कोलकात्ता का ऐग्लों इंडियन व्यापारी ‘अर्नेस्ट टिमोथ मैक्लुस्की‘ किसी काम के सिलसिले में रांची के नजदीक आया था। उसे वहां का शांत हरियाली भरा वातावरण, पहाड़ों का नज़ारा बेहद पसंद आया फिर उसने वहीं बसने का फैसला कर लिया। इसके लिए उसने स्थानीय ‘‘रातू राजा‘‘  से 10 हजार एकड़ जमीन लीज़ पर ली। फिर इस स्थान की तारीफ में एक पत्र 2,00,000 ऐग्लों इंडियन्स परिवारों को लिखकर वहां बसने को कहा। वर्ष 1933 में लगभग 400 ऐग्लों इंडियन्स परिवारों ने वहां अपना आशियाना बनाया।

उन परिवारों ने वहां खूबसूरत बंगले,  कोठिया बनवाई हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से लैस यह गांव जल्द ही मिनी लंदन के नाम से जाना जाने लगा। धीरे-धीरे गांव की आबो-हवा में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बढ़ता चला गया। वहीं यहां बसे एग्लों इंडियन्स स्थानीय संस्कृत से भी अछूते नहीं रहे। उन्होंने बड़ी धूम-धाम से दुर्गापूजा और अन्य भारतीय पर्व भी मनाए।

हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद ज्यादातर परिवार गांव छोड़कर पश्चिमी देशों की ओर लौट गए। आज इस गांव में मात्र 20-24 एंग्लों इंडियन परिवार ही हैं। वर्तमान समय में यहां बने शानदार बंगले, कोठियां को गेस्ट हाउस में बदल दिया गया है अक्सर लोग यहाँ छुट्टियाँ बिताने आते है।

मौसम के लिहाज से भी यह स्थान बेहद खुशनुमा है। साल भर यहाँ का मौसम सुहावना रहता है। धार्मिक समरसता के लिहाज से भी यहां एक ही परिसर में बने मंदिर,  मस्जिद,  चर्च और गुरूद्वारा देखने को मिलते है।

वर्तमान में इस गांव की लोकप्रियता बॉलीवुड तक जा पहुँची है। अब इस गांव में देसी-विदेशी फिल्मों की शूटिंग भी हो रही है। बॉलीवुड की फिल्म ‘ए डेथ इन ए गंज‘ की शूटिंग इसी गांव में हुई है

नजदीकी रेलवे स्टेशन- रांची

रांची के लिए गाड़ियाँ

 

भगवान् के बगीचे में आपका स्वागत है- मावल्यान्नॉंग गांव

Mewlynnong Village

साफ-सफाई भला किसे पसंद नहीं होती। मगर गांव देहात के बारे में प्रायः हमारी धारणा इसके विपरीत होती है। ऐसे में पूर्वोतर के राज्य मेघालय का एक गांव मावल्यान्नॉंग साफ-सफाई के मामले में अपनी अलग पहचान बना चुका है।

यह गांव अपने खूबसूरत बाग-बगीचों और साफ-सफाई के कारण ईश्वर के बाग का नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हो चुका है। गांव के लोग साफ-सफाई के लिए इतने जागरूक है कि अगर यहां के बच्चे भी सड़क पर कचरा देख ले तो तुरंत सफाई में जुट जाते है। अपनी इसी अनोखी पहल के चलते इस गांव को बर्ष 2003 में एशिया और 2005 में भारत के सबसे सुंदर गांव के खिताब से नवाज़ा जा चुका है।

वही बात अगर गांव में शिक्षा के स्तर की करे तो वह भी काफी सरहानीय है। मावल्यान्नॉंग गांव के ज्यादातर निवासी बोल-चाल में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं। लगभग 100 परिवारों के इस गांव की शिक्षा भी 100 प्रतिशत है। गांववालों का मुख्य पेशा सुपारी (तांबुल) की खेती है।

यहां पर्यटकों के लिए काफी स्टाइलिश टी स्टाल और रेस्टुरेंट भी है। जहां पर्यटक स्थानीय व्यंजनों का भरपूर स्वाद ले सकते है। शिलांग से इसकी दूरी 90 किलोमीटर एवं चेरापूंजी से 92 किलोमीटर है।

नजदीकी रेलवे स्टेशन- गुवाहाटी

गुवाहाटी के लिए रेलगाड़िया

 

और पढ़े: अजब एवं अनूठे  गाँवों भाग 1, भाग 2