By Manoj Tiwari
बाराबंकी शहर से तकरीबन 45 किमी की दूरी पर स्थित किन्टूर गाँव है। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में जब पांडवों को अज्ञातवास के लिए निर्वासित किया गया था। तब पांडवों माँ कुंती के साथ इसी किन्टूर गाँव में ठहरे थे। इसलिए कुंती के नाम से इस गाँव का नाम किन्टूर पड़ा। किन्टूर गाँव में एक पारिजात का अनोखा पेड़ है मान्यता है कि माता कुंती को पूजा अर्चना के लिए पुष्प चाहिए थे, तब पांडव इसे सत्यभामा की बगिया से लेकर आये थे। जानकार इसे कल्पवृक्ष भी कहते हैं। यहाँ पारिजात के इस पेड़ को लेकर कई मान्यताएं हैं। जिसमें सबसे खास बात है कि इस पेड़ का दर्शन मात्र से ही मन की अभिलाषा पूरी हो जाती हैं ।
कई सदियों से लगा ये वृक्ष काफी पुराना है। इसकी टहनिया जमीन को छूती हैं। ऐसा ही एक पेड़ कानपुर देहात के घाटमपुर में भी है, जो काफी दुर्लभ है। इस पेड़ की दुर्लभता को जानने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने जाँच भी की है। हालाँकि वह अभी किसी तरह के निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। वहीँ जो दूसरी सबसे खास बात इसके बारे में पता चली है वह ये है कि अभी रामनगर के किन्टूर गाँव और घाटमपुर के तेजपुर गाँव को छोड़कर ऐसा कोई दूसरा पेड़ नजर नहीं आया है। इसलिए इस पेड़ की खासियत और बढ़ जाती है। साधारणता पारिजात के वृक्ष 25 फीट के होते है मगर किन्टूर गाँव में लगा ये वृक्ष तक़रीबन 50 फीट का है ।
मान्यताएं एवं कहानियां
इस पेड़ से जुड़ी बेहद रोचक कहानियां और मान्यताएं भी हैं। जिसमें सबसे खास कहानी है इस पेड़ के धरती पर उपजने की। वेद-पुराणों के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान पारिजात पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। जिसे इंद्र ने अपनी वाटिका में लगवाया था। पारिजात को ही कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। साथ ही इस वृक्ष को लेकर एक और कहानी भी लोकप्रिय है। मान्यता है कि पारिजात एक राजकुमारी का नाम था। जिन्हें भगवान सूर्य से प्रेम हो गया था। लेकिन उन्हें कभी भगवान सूर्य का प्यार नहीं मिला। जिससे परेशान होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली। बाद में राजकुमारी की समाधि के समीप ही एक पेड़ उग आया, जिसे पारिजात का नाम दिया गया। ऐसा माना जाता है कि इस पेड़ पर राजकुमारी परिजात का अधिकार है। जो सुबह सूर्योदय से सूर्यास्त तक काफी खुश रहती हैं। लेकिन जैसे ही रात होती है। वह व्याकुल हो जाती हैं। इसके पुष्प झड़ने लग जाते है, पेड़ से रोने की आवाज आती है। ऐसा स्थानीय लोगों का भी मानना है। इसके अलावा किन्टूर गाँव के लोगों का ये भी मानना है कि पारिजात को छूने से थकान दूर हो जाती है। ऐसा वेदों पुराणों में भी कहा गया है कि इंद्र की अप्सरा उर्वशी अपनी थकान पारिजात को छूकर ही मिटाती थीं।
ऐसे धरती पर आया पारिजात का वृक्ष-
पारिजात पेड़ के स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर आने की कहानी भी काफी मजेदार और दिलचस्प है। कहता है कि भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणि से प्रेम करते थे और इन दोनों के प्रेम से सत्यभामा नफरत करती थीं। एक इत्तेफाक के तहत देवऋषि नारद ने एक बार भगवान कृष्ण को पारिजात का पुष्प भेंट में दिया, जिसे उन्होंने रुक्मणि को दे दिया। वहीँ जब इस पुष्प के बारे में सत्यभामा को पता चला तो वह भगवान से नाराज हो गयीं। इसलिए उन्होंने भगवान से उस पुष्प को लाने की जिद करने लगीं। श्रीकृष्ण सत्यभामा को मनाने के लिए अपने साथ इन्द्रलोक लेकर गये। वहाँ सत्यभामा ने इंद्र से पारिजात का वृक्ष माँगा जिसे इंद्र देना नहीं चाहते थे। लेकिन भगवान कृष्ण का मान रखते हुए उन्होंने पेड़ को सत्यभामा को दे दिया। लेकिन साथ ही इंद्र ने सत्यभामा को शाप दिया जिससे कि पेड़ तो सत्यभामा के आंगन में लगा था। लेकिन उसका पुष्प रुक्मणी के आंगन में गिरता था। ये आज भी प्रासंगिक है पारिजात का पुष्प पेड़ से बहुत दूर ही गिरता है।
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