भारत के इतिहास को लेकर आपने अक्सर लोगों को बहस करते सुना होगा, किसी का मानना है कि महाभारत का युद्ध कभी हुआ ही नहीं था। वहीं विवाद इस बात पर भी है कि क्या सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदी घटी सभ्यता थी या नहीं ? ऐसे में अगर बात इन ऐतिहासिक स्थानों से जुड़े साक्ष्यों की कि जाए तो पूरे देश में ऐसे कई स्थान हैं जहाँ आज भी सालों पहले रहने वाले लोगों से जुड़े तथ्य मिलते हैं। ऐसे तथ्य जो न सिर्फ इस बात की तस्दीक करते हैं कि इस जगहों पर लोगों की बसाहट थी बल्कि उनकी जीवनशैली आजके लोगों की तरह ही माँडन भी थी। मगर अलग-अलग कारणों से ये सारे नगर-गाँव उजड़ गये, कहीं गुम हो गये। आइये जाने देश के ऐसे ही कुछ गुमशुदा नगरों के बारे में–
राखीगढ़ी- हरियाणा
स्थापन- 4600 ईसापूर्व, पतन-1900 ईसापूर्व, खोज- 1965
दिल्ली से 150 दूर हरियाणा के हिसार का एक गुमनाम गाँव राखीगढ़ी उस वक़्त अचानक चर्चा में आ गया जब यहाँ सिन्धु घटी सभ्यता के अवशेष बरामद हुए। यहाँ मिले अवशेषों को देखकर इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि सैकड़ों साल पहले भी यहाँ बसाहट थी। यहाँ के बाशिंदे आज से भी ज्यादा माँर्डन थे, इस बात की तस्दीक यहाँ मिले पक्की सड़कों के अवशेष, नालियां, जल संग्रह प्रणाली, गोदाम, तांबे एवं अन्य धातु के बर्तन आदि के अवशेषों से मिलती है।
इसके अलावा एएसआई की टीम को यहाँ से 4500 वर्ष पुरानें 11 नरकंकाल भी मिले हैं। वहीं एएसआई को यहाँ बलि देने की 5 वेदी भी मिली है। गाँव में मिले अन्य ऐतिहासिक सामानों मिटटी के खिलोने, सुराही, कीमती पत्थर, चूड़ियाँ आदि को अब दिल्ली के नेशनल म्यूज़ियम में संरक्षित कर रखा गया है।
लोथल- गुजरात
स्थापना- 3700 ईसापूर्व, पतन-1900 ईसापूर्व, खोज- 1954
अहमदाबाद जिले के सरागवाला गाँव के नज़दीक स्थित ये स्थान भी देश का एक लुप्त नगर है। इसकी खुदाई एवं जांच के दौरान यह पता चला कि ये एक संपन्न व्यापारिक नगर था। यहाँ से मोती एवं अन्य धातु के आभूषणों का व्यापार देश-दुनिया में किया जाता था। वर्ष 1961 में एएसआई द्वारा यहाँ करवाई गई खुदाई में हड़प्पा संस्कृति से जुड़े कई अवशेष मिले थे। इनमें यहाँ के निवासियों का व्यवस्थित नगर, बाजार स्थल, जल निकासी कुएँ, नहरें, स्नानघर एवं शौचालय आदि मिले थे।
साँची- मध्यप्रदेश
स्थापना-300 ईसापूर्व, पतन-1300 ईसापूर्व, खोज- 1818
भोपाल से 46 किलोमीटर एवं विदिशा से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित साँची का स्तूप बौद्ध काल का एक प्राचीन नगर है। यहाँ आपके देखने के लिए दो बड़े स्तूपों के अलावा अनेकों छोटे-छोटे स्तूप हैं। बुद्ध के समय में बने इन स्तूपों को प्रेम, शांति, विश्वास एवं साहस का प्रतीक बताया जाता है। जानकारों के अनुसार यहाँ के स्तूप संख्या एक को सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसापूर्व बनवाया था। वहीं इसके केंद्र में निर्मित एक ढांचे में बुद्ध के कुछ अवशेष आज भी मौजूद हैं।
सुरकोटड़ा- गुजरात
स्थापना- 2100 ईसापूर्व, पतन- 1700 ईसापूर्व, खोज- 1964
गुजरात के कच्छ जिले में स्थित इस नगर की खोज साल 1964 में हुई थी। इस स्थान पर भी सिंधु सभ्यता से जुड़े कई प्रमाण मिले थे। इनमें कच्ची ईंटों एवं मिटटी से बने एक किले के अलावा घोड़े की हड्डियां एवं अनोखे प्रकार की कब्रगाह भी मिली थी। सुरक्षा के लिहाज़ से यहाँ का दुर्ग एवं नगर दोनों ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे।
मुजिरिस- केरल
स्थापना- 100 ईसापूर्व, पतन- 1341 ईसापूर्व, खोज- 1945
केरल के कोच्चि से 50 किमी दूर पेरियार नदी के तट पर स्थित कोडुंगुल्लुर का मुजिरिस भी देश का एक प्राचीन नगर है। इसकी स्थापना या उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति 100 ईसापूर्व हुई थी। यहाँ स्थित बंदरगाह के बारे में कहा जाता है कि ये एक अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह था जहाँ से इजिप्ट, यमन, रोमन एवं पश्चिम एशिया के देशों के व्यापारियों के साथ व्यापार किया जाता था।
कालीबंगा- राजस्थान
स्थापना- 3700 ईसापूर्व, पतन- 1750 ईसापूर्व, खोज- 1919
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में मिले इस नगर से हड़प्पा संस्कृति एवं सरस्वती नदी के होने के प्रमाण मिलते हैं। यहाँ हड़प्पा संस्कृति के विस्तार के बहुत ही दिलचस्प एवं महत्वपूर्ण अवशेष मिले थे। जिनमें तांबें के औज़ार एवं मूर्तियां, मोहरें, सामान तोलने का वाट, आभूषण एक व्यवस्थित नगर एवं एक दुर्ग के होने के प्रमाण, किसानी के सामान के साथ ही धार्मिक कलाकृतियां आदि प्राप्त हुई थी। लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के बारे में मान्यता है कि यह अब वह स्थानीय घग्गर नदी के रूप में मौजूद है।
विजयनगर- कर्णाटक
स्थापना- 1336 ईस्वी, पतन-1565 ईस्वी, खोज- 1800 ईस्वी
उत्तर कर्णाटक के बेल्लारी जिले की तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित था विजयनगर। विजयनगर को रामायण काल में किष्किंधा नगरी के नाम से भी जाना जाता था। किष्किंधा यानी वानरराज बाली-सुग्रीव की नगरी। इस नगर को विजयनगर राजवंश का गढ़ भी माना जाता है। आपको बता दें कि प्रसिद्ध ऐतिहासिक चरित्र तेनालीराम भी विजयनगर के ही निवासी थे। वे विजयनगर राजवंश के आधिकारिक ब्राह्मण भी थे।
धोलिविरा- गुजरात
स्थापना- 2650 ईसापूर्व, पतन- 1450 ईसापूर्व, खोज- 1800 ईस्वी
गुजरात के कच्छ में स्थित धोलिविरा गाँव की खोज 1967-68 में हुई थी। यहाँ मिले नगर के प्रमाणों से पता चलता हैं कि ये भी हड़प्पा संस्कृति के समय का एक संपन्न नगर था। एएसआई का मानना है कि ये एक समृद्ध नगर था जो शायद भूकंप के कारण उजड़ गया होगा। इसका अंदाजा उन्होंने यहाँ की ऊँची-नीची धरती को देखकर लगाया है। हालाँकि वहाँ किसी धर्म से जुड़े कोई प्रमाण नहीं मिले थे मगर फिर भी वहाँ अंतिम संस्कार की अलग-अलग व्वस्थाएं पाई गई है।
नागार्जुनकोंडा- आंध्रप्रदेश
स्थापना- 225 ईस्वी, पतन- 325 ईस्वी, खोज- 1926 ईस्वी
हैदराबाद से 100 मिल दूर स्थित है नागार्जुनकोंडा नामक एक प्राचीन स्थान है। यह स्थान बौद्ध धर्म से जुड़े आचार्य नागार्जुन के नाम पर रखा गया था। इतिहास के अनुसार पहली शताब्दी में यहाँ सातवाहन राजाओं का राज था। सातवाहन राजवंश के बाद इस स्थान पर लंबे समय तक इक्ष्वाकु राजवंश का भी राज था। लगभग 50 वर्षों पूर्व यहाँ नौ बौद्ध स्तूप बरामद किये गए थे। स्तूपों के नज़दीक चूने के पत्थर से निर्मित बौद्ध के जीवन के कई दृश्य बने दिखते हैं, जिससे इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं कि प्राचीन काल में यहाँ के निवासियों का बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव था।
आगे पढ़ें-
अत्यंत रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी!
धन्यवाद!
Thanks aage bhi jankari dete rahiyega
जी ज़रूर, आपके लिए रेलयात्री के ब्लॉग में 9 भाषाओँ में ऐसे दिलचस्प लेख उपलब्ध है.समय निकाल कर उन्हें भी पढ़ें, आपके द्वारा दिए जाने वाले सुझाव ही हमें और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करते है. धन्यवाद
[…] गैजेट्स से इतर क्या कभी आपने किसी गाँव में जाकर किसानों से खेती के गुण सीखने की कोशिश की हैं? या […]