हिल स्टेशन चर्चेज़- इतिहास की खूबसूरत धरोहर

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Churches made by Britishers

भारत में ब्रिटिश राज का वक़्त हर भारतीय के लिए किसी कड़वी याद से कम नहीं माना जाता, ऐसी यादें जिसे शायद कोई भी हिन्दुस्तानी याद नहीं रखना चाहता। मगर ऐसा भी नहीं है कि ब्रिटिशों कि हुकूमत की भारतीयों के पास सिर्फ कड़वी यादों ही हैं। ब्रिटिश राज के दौरान यहाँ आये ब्रिटिशों ने भले ही अपनी ज़रूरतों के लिए ही सही मगर बहुत सी खूबसुरत इमारतों का निर्माण भी करवाया है। गुड फ्राइडे एवं ईस्टर के उपलक्ष्य में आइये जाने ब्रिटिश जमाने में भारत के हिल स्टेशन्स में बने कुछ खूबसूरत गिरजाघरों के बारे में-

सैंट जॉन चर्च, डलहाउज़ी

Good Friday destination

इतिहास और खूबसूरती का मिश्रण सैंट जॉन चर्च डलहाउज़ी, भारत के उन चर्चेज में से है जिसके बारे में कम ही लोग जानते है। डलहाउज़ी की खुबसूरत वादियों के बीच बने होने के अलावा इस चर्च का इस इलाके का प्रथम गिरजाघर होना भी इसे महत्वपूर्ण बनाता है। सन 1963 में बने इस चर्च की वास्तुकला इंग्लैंड के रोमन कैथोलिक चर्च से प्रभावित है जबकि भारत में यह प्रोटेस्टेंट इसाई समुदाय के अधीन है।

इसे इतिहास एवं कला प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान कहा जाता है। ब्रिटिश इतिहास की कलाकारी को अपने भीतर समेटे ये चर्च इतिहास प्रेमियों के लिए एक उपयुक्त स्थान है। यहाँ स्थित पुस्तकालय में भी आप इसके इतिहास एवं डलहाउज़ी के बारे में बहुत कुछ जान पढ़ सकते है।

डलहाउज़ी के लिए बस से सफ़र सबसे उपयुक्त विकल्प है-

सैंट स्टीफन चर्च, ऊटी

Hill stations churches

सन 1829 में स्टीफन रुम्बोल्ड लुशिंगटन तत्कालीन गवर्नर (मद्रास प्रेसीडेंसी) द्वारा निर्मित सैंट स्टीफन चर्च नीलगिरी नगर के सबसे महत्वपूर्ण एवं अनूठे गिरजाघरों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि इस गिरजाघर में लगे लकड़ी के बीम्स हाथियों द्वारा टीपू सुल्तान के यहाँ से मंगवाए गए थे।

सैंट पॉल चर्च, लेंडौर मसूरी

Beautiful churches

मसूरी के लेंडौर में स्थित सैंट पॉल चर्च की स्थापना सन 1840 ईस्वी में बिशॉप डेनिअल विल्सन ने की थी। यह चर्च लेंडौर के चार दुकान इलाके में स्थित है। कहते है कि इस चर्च का संबंध प्रसिद्ध पर्यावरण संरक्षणकर्ता एडवर्ड जिम कॉर्बेट से भी है। उसके माता-पिता ने इसी गिरजाघर में विवाह किया था।

मसूरी के लिए बस से सफ़र सबसे उपयुक्त विकल्प है-

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7750 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस चर्च के आस-पास का मौसम कैसा भी हो यहाँ की खूबसूरती हमेशा यहाँ आने वालों को अपनी ओर लुभाती है। फिर भले बात बर्फ से ढके हिमालय की हो या फिर यहाँ स्थित दरख्तों की। यानी कि आप किसी भी मौसम में इस जगह का लुत्फ़ उठा सकते है। वहीँ जब आप यहाँ घुमने आये तो यहाँ के स्थानीय ज़ायकों का मज़ा लेना न भूले, ये आपकी यात्रा का स्वाद यक़ीनन दोगुना  कर देंगे।

सैंट सेवियर्स चर्च, माउंट आबू

Ester Destination

राजस्थान के इकलौते हिल स्टेशन माउंट आबू में स्थित सैंट सेवियर्स चर्च यहाँ बना पहला चर्च है। इस गिरजाघर की स्थापना सन 1834 में एलिज़ाबेथ स्मिथ की याद में की गई थी। खूबसूरत हरियाली भरे इलाके में स्थित इस चर्च में लाईब्रेरी एवं एक म्यूजियम भी है। ये यहाँ आने वाले हर किसी को यहाँ के इतिहास से रूबरू करवाते हैं। वहीँ इस गिरजाघर में लगी खूबसूरत खिड़कियाँ एवं इसकी खुबसूरत छत भी काफी मनमोहक है।

सैंट जॉन चर्च, मैक्लोडगंज

Indian churches

हरे भरे क्षेत्र में देवदार के घने, गगनचुंबी पेड़ों के बीच स्थित सैंट जॉन चर्च मैक्लोडगंज के प्राचीन भवनों का बेमिसाल उदाहरण है। सन 1852 में निर्मित ये गिरजाघर बेपटिस्ट जॉन को स्थानीय ब्रिटिशों की श्रधांजलि थी। 166  साल पुरानी चर्च की ईमारत ने नजाने कितने ही मौसम देखे है, मगर आज भी इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।  यहाँ की कुदरती खूबसूरती का भी इस चर्च की खूबसूरती में अपना ही योगदान है।

यह चर्च मैक्लोडगंज के स्थानीय बाज़ार से ठीक पहले निर्जन क्षेत्र में स्थित है। यहाँ भारतीय ब्रिटिश नागरिक लार्ड एल्गिन भारत के दुसरे (वाईस रॉय) की कब्र भी है।

मैक्लोडगंज के लिए बस से सफ़र सबसे उपयुक्त विकल्प है-

सैंट एंड्रू चर्च, दार्जलिंग-

Historical churches in India

दार्जलिंग की खुबसूरत वादियों में मौजूद सैंट एंड्रू चर्च यहाँ निर्मित भव्य इमारतों में से एक है। दार्जलिंग के प्रसिद्ध माल रोड पर स्थित इस चर्च का निर्माण 18वी सदी में करवाया गया था। यहाँ मौजूद साक्ष्यों के अनुसार संत एंड्रू ने 30 नवंबर 1843 में इसकी नीव रखी थी। ब्रिटिश राज में निर्मित इस चर्च की आतंरिक साज-सज्जा बेहद लुभावनी है। आज भी ब्रिटिश वास्तुकला की इस खूबसूरती को यहाँ के लोगों ने संजोकर रखा है। हर साल यहाँ बड़ी धूम-धाम से क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है। दार्जलिंग में स्थित होने के कारण ये हमेशा से यहाँ आने वाले सैलानियों के लिए भी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा है।

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